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बायकुला चिड़ियाघर में मेयर बंगले की मरम्मत शुरू, 65 लाख रुपये के खर्च पर उठे सवाल
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Repair of Mayor Bungalow in Byculla: मुंबई के बायकुला चिड़ियाघर परिसर में स्थित मेयर बंगला, जो कि मार्च 2022 से रखरखाव की समस्याओं के कारण बंद पड़ा था, आखिरकार बीएमसी की नजर में आ गया है. इस बंगले में सबसे बड़ी समस्या इसकी लकड़ी की संरचनाओं में दीमक का व्यापक संक्रमण है, जिसे दूर करने के लिए अब बीएमसी ने भारी-भरकम 65 लाख रुपये का बजट स्वीकृत किया है. देखें इससे जुड़ी तस्वीरें- (PICS/ASHISH RAJE)
Updated on : 21 January, 2025 09:47 IST | Ujwala Dharpawar
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सवाल यह है कि क्या जनता की मेहनत की कमाई का यह सही उपयोग है या फिर यह रकम सिर्फ सरकारी खर्चों की लंबी फेहरिस्त में शामिल हो जाएगी? (PICS/ASHISH RAJE)
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बीएमसी के अनुसार, जीर्णोद्धार के तहत बंगले में मौजूद दीमकों को खत्म करने के लिए व्यापक दीमक-रोधी पूरी तरह से मिलाने का काम किया जा रहा है. इसके अलावा, भवन की संरचना में मौजूद लीकेज को भी दुरुस्त किया जाएगा.
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लेकिन सवाल यह है कि मार्च 2022 से अब तक इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? नागरिकों का आरोप है कि प्रशासनिक लापरवाही के कारण बंगले की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि अब इस पर लाखों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं.
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गौरतलब है कि यह बंगला मूल रूप से एक अस्थायी समाधान था, क्योंकि दादर स्थित ऐतिहासिक मेयर बंगला 2018 में बालासाहेब ठाकरे मेमोरियल पब्लिक ट्रस्ट को सौंप दिया गया था.
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तब से बायकुला बंगला मेयर के आधिकारिक निवास के रूप में कार्य कर रहा था. अब इस अस्थायी व्यवस्था को बनाए रखने के लिए इतने भारी खर्च को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं.
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क्या बीएमसी इस परियोजना को सिर्फ औपचारिकता निभाने के लिए चला रही है या वाकई इसे नागरिक उपयोग के लिए तैयार किया जा रहा है?
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मुंबई में हर जगह विकास और रखरखाव के नाम पर टैक्सपेयर्स का पैसा बर्बाद किया जा रहा है. सड़कों की मरम्मत हो या जल आपूर्ति समस्या, हर बार नागरिकों को निराशा ही हाथ लगती है.
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अब मेयर बंगले के लिए 65 लाख रुपये का बजट आवंटित किया गया है, लेकिन क्या यह खर्च वाकई में जरूरी था?
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नागरिकों का कहना है कि अगर इस राशि का सही उपयोग किया जाए तो मुंबई के अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को हल किया जा सकता है.
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बीएमसी को चाहिए कि मरम्मत कार्य में पारदर्शिता बनाए रखे और जनता को भरोसा दिलाए कि यह खर्च व्यर्थ नहीं जाएगा. वरना, यह एक और सरकारी खर्च बनकर जनता के गुस्से का कारण बन सकता है.
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