इस विशेष पूर्णिमा की शुरुआत सूर्यास्त के समय हुई और यह रात भर अपने उच्चतम बिंदु तक पहुंची. 12 फरवरी की रात को इस चाँद को मुंबई के आसमान में साफ देखा जा सका था. Pics/Atul Kamble
मुंबई जैसे शहर में, जहाँ बर्फबारी नहीं होती, स्नो मून का नाम इतिहास और प्रकृति के साथ उसके गहरे संबंध को दर्शाता है. यह नाम उन कठिनाइयों की याद दिलाता है जो प्राचीन समय में लोगों को सर्दियों में सामना करनी पड़ती थीं.
आधी रात के बाद, जैसे-जैसे चंद्रमा आसमान में और ऊंचा उठा, उसकी चमक और भी बढ़ती गई. इस रात को चंद्रमा ने न केवल आकाश को रोशन किया,
बल्कि कई लोगों को अपनी बालकनी और छतों पर इस अद्भुत दृश्य का आनंद लेने के लिए बाहर निकलने का कारण भी दिया.
स्नो मून का यह दृश्य न केवल खगोलशास्त्रियों के लिए, बल्कि सामान्य जनता के लिए भी काफी रोचक और शिक्षाप्रद रहा.
इसने लोगों को प्रकृति के साथ तालमेल बिठाने और रात के समय बाहर निकलकर ताजगी महसूस करने का एक सुनहरा मौका प्रदान किया.
इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएं मुंबई जैसे महानगर में लोगों को उनके दैनिक जीवन से थोड़ा विराम देकर, खगोलीय घटनाओं के महत्व को समझने और उसका अनुभव करने का मौका देती हैं.
यह न केवल शिक्षाप्रद होता है बल्कि यह लोगों में वैज्ञानिक सोच और प्रकृति के प्रति आदर को भी बढ़ाता है.
स्नो मून की यह रात मुंबई के लोगों के लिए एक यादगार घटना के रूप में दर्ज की जाएगी और इसे देखने के लिए आने वाले सालों में भी लोग उत्साहित रहेंगे.
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