Updated on: 23 June, 2025 09:02 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और अमेरिका के युद्ध में उतरने के बीच कच्चे तेल की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. तेल की कीमतें सोमवार को जनवरी के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं.
प्रतीकात्मक छवि
तेल की कीमतें सोमवार को जनवरी के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं. ब्रेंट क्रूड वायदा 1.91 डॉलर यानी 2.49 फीसदी बढ़कर 78.93 डॉलर पर पहुंच गया. यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 1.89 डॉलर यानी 2.56 फीसदी बढ़कर 75.73 डॉलर पर पहुंच गया. इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव और अमेरिका के युद्ध में उतरने के बीच कच्चे तेल की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच गई हैं. तेल की कीमतें सोमवार को जनवरी के बाद सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गईं. ब्रेंट क्रूड वायदा 1.91 डॉलर यानी 2.49 फीसदी बढ़कर 78.93 डॉलर पर पहुंच गया. यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड 1.89 डॉलर यानी 2.56 फीसदी बढ़कर 75.73 डॉलर पर पहुंच गया. इससे पहले भी आज दोनों कीमतों में 3 फीसदी की तेजी आई थी. जिससे कीमतें क्रमश: 81.40 डॉलर और 78.40 डॉलर पर पहुंच गई थीं. जो 5 महीने का उच्चतम स्तर है. ईरान ओपेक का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादक है. ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध में अमेरिका भी उतर गया है. इजरायल का पक्ष लेते हुए अमेरिका ने ईरान के परमाणु स्थलों पर कई बड़े हमले किए हैं. जिसके बाद इस युद्ध के आगे बढ़ने की संभावना जताई जा रही है.
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अमेरिका के इस युद्ध में शामिल होने के बाद अब लोगों को डर सता रहा है कि ईरान होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो पूरी दुनिया में तेल की आपूर्ति प्रभावित होगी. दुनियाभर में सप्लाई होने वाले कच्चे तेल का पांचवां हिस्सा इसी होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है. यह रास्ता काफी संकरा है. ईरान प्रेस टीवी की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश की संसद ने इस रास्ते को बंद करने पर सहमति जताई है. इससे पहले ईरान ने इस रास्ते को बंद करने की धमकी दी थी. लेकिन उसने ऐसा कभी नहीं किया. रविवार को ब्रोकरेज हाउस गोल्डमैन सैक्स ने उम्मीद जताई कि निकट भविष्य में तेल की कीमतें 110 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं. हालांकि ब्रोकरेज हाउस का मानना है कि तेल और गैस की आपूर्ति पर इसका कोई बड़ा असर नहीं होगा.
इजरायल और ईरान के बीच युद्ध (इजरायल-ईरान संघर्ष) बढ़ता जा रहा है और अमेरिका ने भी ईरानी परमाणु स्थलों पर हमला करके इसे और तेज कर दिया है. इस बीच ईरान भी लगातार होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दे रहा है. होर्मुज जलडमरूमध्य में बढ़ते संघर्ष के बीच भारत ने बड़ा कदम उठाया है और अब वह मध्य पूर्वी आपूर्तिकर्ताओं की तुलना में रूस और अमेरिका से अधिक तेल आयात कर रहा है. आंकड़ों पर गौर करें तो जून में रूस से भारत का तेल आयात दो साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. वैश्विक व्यापार विश्लेषण फर्म केपलर के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत ने जून में रूस और अमेरिका से अपने तेल आयात में भारी वृद्धि की है, जो पारंपरिक मध्य पूर्वी आपूर्तिकर्ताओं से कुल खरीद से अधिक है. कंपनी के आंकड़ों पर गौर करें तो भारतीय रिफाइनर जून में प्रतिदिन 2-2.2 मिलियन बैरल रूसी कच्चे तेल का आयात कर रहे हैं, जो दो साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है.
भारत का तेल आयात रूस से इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत से आयात किए जाने वाले कच्चे तेल से भी अधिक है, जो जून में लगभग 2 मिलियन बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है. इससे पहले मई 2025 में रूस से भारत का कच्चा तेल आयात 1.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन था. अमेरिका से कच्चे तेल के आयात की बात करें तो यह भी जून में बढ़कर 439,000 बैरल प्रतिदिन हो गया है, जो मई में 280,000 बैरल प्रतिदिन था. केपलर के मुख्य शोध विश्लेषक सुमित रिटोलिया के अनुसार, हालांकि अभी तक इजरायल-ईरान संघर्ष से आपूर्ति प्रभावित नहीं हुई है, लेकिन जहाज की गतिविधि से पता चलता है कि आने वाले दिनों में मध्य पूर्व से कच्चे तेल की खेप में कमी आएगी.
जहाज मालिक खाड़ी में खाली टैंकर (बैलेस्टर) भेजने से हिचकिचा रहे हैं, ऐसे जहाजों की संख्या 69 से घटकर सिर्फ 40 रह गई है और ओमान की खाड़ी से एमईजी-बाउंड सिग्नल आधे हो गए हैं. रिपोर्ट के अनुसार, इस महीने 1 से 19 जून के बीच रूसी शिपमेंट ने भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का 35 प्रतिशत से अधिक हिस्सा कवर किया. रिटोलिया ने कहा कि अगर होर्मुज जलडमरूमध्य में संघर्ष तेज होता है या इसमें अल्पकालिक व्यवधान होता है, तो रूसी बैरल का हिस्सा और बढ़ जाएगा, क्योंकि भारत उच्च माल ढुलाई लागत के बावजूद अमेरिका, नाइजीरिया, अंगोला और ब्राजील की ओर अधिक रुख करेगा. इसके अलावा, भारत किसी भी कमी को पूरा करने के लिए अपने रणनीतिक भंडार (9-10 दिनों के आयात को कवर करता है) का उपयोग कर सकता है.
दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक भारत अपने कच्चे तेल का लगभग 40 प्रतिशत और अपनी गैस का लगभग आधा हिस्सा होर्मुज जलडमरूमध्य के माध्यम से ले जाता है. जो एक प्रमुख तेल मार्ग है. लेकिन इजरायल और अमेरिकी सैन्य अभियानों के बाद ईरानी चेतावनियों के कारण यह खतरे में पड़ता दिख रहा है. ईरान ने अपने नियंत्रण वाले होर्मुज को बंद करने की धमकी दी है. रिपोर्टों के अनुसार, दुनिया के कच्चे तेल का 26 प्रतिशत व्यापार इसी मार्ग से होता है और इसमें से 44 प्रतिशत कच्चा तेल एशिया जाता है, जिसका ज्यादातर इस्तेमाल चीन और कुछ हद तक भारत में होता है. ऐसे में इस महत्वपूर्ण मार्ग में कोई भी रुकावट बड़ी समस्या साबित हो सकती है, जिसे ध्यान में रखते हुए भारत ने यह कदम उठाया है.