Updated on: 21 July, 2025 08:02 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
अस्पताल द्वारा जारी एक आधिकारिक बुलेटिन में बताया गया कि वरिष्ठ नेता का दोपहर 3.20 बजे पट्टोम एसयूटी अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में इलाज के दौरान निधन हो गया.
चित्र/X
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के वरिष्ठ नेता वीएस अच्युतानंदन का सोमवार को 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया. पार्टी के राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने यह जानकारी दी. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अस्पताल द्वारा जारी एक आधिकारिक बुलेटिन में बताया गया कि वरिष्ठ नेता का दोपहर 3.20 बजे पट्टोम एसयूटी अस्पताल के गहन चिकित्सा कक्ष में इलाज के दौरान निधन हो गया. देश के सबसे सम्मानित कम्युनिस्ट नेताओं में से एक और केरल के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति, अच्युतानंदन, 23 जून को हृदय गति रुकने के बाद से उपचार ले रहे थे.
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रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के संस्थापक सदस्य, अच्युतानंदन ने श्रमिकों के अधिकारों, भूमि सुधारों और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया. उन्होंने 2006 से 2011 तक केरल के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, जिसमें से तीन बार विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया. अस्पताल में पत्रकारों से बात करते हुए गोविंदन ने कहा कि अच्युतानंदन का पार्थिव शरीर एक घंटे के भीतर तिरुवनंतपुरम स्थित एकेजी अध्ययन एवं अनुसंधान केंद्र ले जाया जाएगा, जहाँ पार्टी कार्यकर्ता और आम जनता उन्हें श्रद्धांजलि दे सकेंगे.
सोमवार रात को पार्थिव शरीर राज्य की राजधानी स्थित उनके घर ले जाया जाएगा. मंगलवार सुबह पार्थिव शरीर को जनता के अंतिम दर्शन के लिए दरबार हॉल में रखा जाएगा. रिपोर्ट के अनुसार इसके बाद, मंगलवार दोपहर को पार्थिव शरीर को उनके गृहनगर अलप्पुझा ले जाया जाएगा. गोविंदन ने कहा, "हमें रात तक वहाँ पहुँचने की उम्मीद है." उन्होंने आगे कहा कि रास्ते में लोग अपने पूर्व नेता के अंतिम दर्शन के लिए अंतिम संस्कार में शामिल हो सकते हैं.
अलप्पुझा में पार्टी के जिला मुख्यालय में कुछ देर रुकने के बाद, अच्युतानंदन का अंतिम संस्कार बुधवार दोपहर तक अलप्पुझा वालिया चुडुकाडु स्थित सार्वजनिक श्मशान घाट में किया जाएगा. रिपोर्ट के मुताबिक दिन में पहले ही उनकी बिगड़ती सेहत की खबर मिलने के बाद, मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन और माकपा नेता अस्पताल पहुँच गए.
20 अक्टूबर, 1923 को अलप्पुझा जिले के एक तटीय गाँव पुन्नपरा में जन्मे अच्युतानंदन का प्रारंभिक जीवन कठिनाइयों और गरीबी से भरा रहा. चार साल की उम्र में उनकी माँ का देहांत हो गया और स्कूल में ही उनके पिता का निधन हो गया, जिसके कारण उन्हें सातवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. उन्होंने कुछ समय के लिए एक कपड़े की दुकान में और बाद में एक नारियल के रेशे वाली दुकान में मज़दूर के रूप में काम किया. उनकी राजनीतिक यात्रा 1940 के दशक में शुरू हुई, जो उन्हें प्रसिद्ध कम्युनिस्ट नेता पी. कृष्ण पिल्लई से प्रेरित थी. 1943 में, उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन में अलप्पुझा का प्रतिनिधित्व किया. 1946 के पुन्नपरा-वायलार विद्रोह के दौरान, वे भूमिगत हो गए और बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और बुरी तरह पीटा गया. पुलिस ने उन्हें मृत मान लिया था, और जब उन्हें जंगल में दफनाया जाने वाला था, तभी पता चला कि वे अभी भी जीवित हैं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया. 1946 के विद्रोह के दौरान प्रताड़ित किए जाने के बावजूद, वे राजनीतिक सक्रियता में लौट आए. 1956 में, वे पार्टी की राज्य समिति में शामिल हुए और लगातार आगे बढ़ते हुए प्रमुख राष्ट्रीय पदों पर पहुँचे. 1964 में, वे उन 32 राष्ट्रीय परिषद सदस्यों में शामिल थे, जिन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी से अलग होकर सीपीआई(एम) का गठन किया, जो भारतीय वामपंथी राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था.
उसी वर्ष वे पार्टी की केंद्रीय समिति में शामिल हुए और 1985 में पोलित ब्यूरो में शामिल हुए. अच्युतानंदन अपनी ईमानदारी, बोलचाल की मलयालम भाषा में तीखे भाषणों और भ्रष्टाचार, भूमि अधिग्रहण और सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ अपने दृढ़ रुख के लिए जाने जाते थे. अपने अंतिम वर्षों में भी, वे आम लोगों के प्रति अपने समर्पण के लिए बेहद लोकप्रिय और व्यापक रूप से सम्मानित रहे. उन्होंने एक स्पष्टवादी, बेबाक नेता के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बनाई, जो पर्यावरण संरक्षण से लेकर महिला अधिकारों तक, सार्वजनिक मुद्दों पर लगातार अपनी आवाज़ उठाते रहे. एक समय तो उन्हें पार्टी की आधिकारिक लाइन की सार्वजनिक रूप से आलोचना करने के कारण पोलित ब्यूरो से हटा दिया गया था. अच्युतानंदन के लिए, विचारधारा कोई ऐसी चीज़ नहीं थी जिस पर वे केवल विश्वास करते थे - बल्कि वह थी जिसे उन्होंने जिया था. जब वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सत्ता में लौटा, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से वंचित कर दिया गया. पार्टी ने आंतरिक फैसलों का हवाला देते हुए उन पर "गुटबाजी" का आरोप लगाया और उनकी जगह पिनाराई विजयन को चुना.
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