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वंजारा, थर्मल ड्रोन और फिर भारतीय फौज ने साफ किए आतंकवादी

Updated on: 31 July, 2025 09:07 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

सुरक्षा बल 22 अप्रैल को हमले के दिन से ही उनकी तलाश में थे. लेकिन, 17 दिनों में दो बार उनके चीनी संचार उपकरणों से मिले सिग्नल ने सुरक्षा बलों के लिए उन तक पहुँचना आसान बना दिया.

ऑपरेशन महादेव (फोटो साभार: एजेंसी)

ऑपरेशन महादेव (फोटो साभार: एजेंसी)

पहलगाम आतंकी हमले के साजिशकर्ताओं को खत्म करने में सुरक्षा बलों को तीन महीने से ज़्यादा का समय लगा. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के प्रमुख आतंकी संगठन द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF) के आतंकियों को लंबे समय तक छिपे रहने की ट्रेनिंग दी गई थी. सुरक्षा बल 22 अप्रैल को हमले के दिन से ही उनकी तलाश में थे. लेकिन, 17 दिनों में दो बार उनके चीनी संचार उपकरणों से मिले सिग्नल ने सुरक्षा बलों के लिए उन तक पहुँचना आसान बना दिया. आखिरकार, सोमवार, 28 अप्रैल को श्रीनगर के पास एक जंगल में सेना, सीआरपीएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के संयुक्त अभियान में वे मारे गए. वंजारा से मिली जानकारी के आधार पर उन्हें पकड़ा गया.

शनिवार, यानी 26 जुलाई को, पिछले 17 दिनों में दूसरी बार, सुरक्षा बलों ने उनके संचार उपकरणों से सिग्नल ट्रैक किए. इससे उन्हें श्रीनगर के बाहर दाचीगाम के जंगलों में मुलनार के मैदानों में महादेव शिखर के पास लिडवास में जाल बिछाने का मौका मिल गया. यह इलाका रणनीतिक रूप से बेहद अहम है. इन आतंकियों से बरामद हथियारों और गोला-बारूद के भारी जखीरे में चीनी संचार उपकरण बेहद अहम है.


उच्चस्तरीय सूत्रों के अनुसार, इन आतंकियों ने पहले 11 जुलाई को पहलगाम के बैसरन घाटी इलाके में इस उपकरण को सक्रिय किया था, जहाँ उन्होंने 22 अप्रैल को 25 पर्यटकों और एक स्थानीय नागरिक की हत्या कर दी थी. इसके बाद सुरक्षा बलों ने दिन-रात उनकी तलाश शुरू कर दी और लगातार उनके बदलते ठिकानों पर नज़र रखनी शुरू कर दी. सुरक्षा बलों के दबाव के चलते ये आतंकी लगातार अपना ठिकाना बदल रहे थे. शनिवार को महादेव चोटी इलाके में उनके सैटेलाइट फोन का सिग्नल मिला. इसके बाद सुरक्षा बलों ने तुरंत अंतिम ऑपरेशन शुरू किया, जिसे बाद में `ऑपरेशन महादेव` के नाम से जाना गया. यह सिग्नल दाचीगाम के जंगलों में मिला, जहाँ से सबसे नज़दीकी रिहायशी इलाका चक दारा में लगभग 30 किलोमीटर दूर है.


अनंतनाग ज़िले की बैसरन घाटी, श्रीनगर के दाचीगाम के जंगलों से सड़क मार्ग से लगभग 120 किलोमीटर दूर है. लेकिन, जंगल की दूरी केवल 40-50 किलोमीटर है, जिसके बीच में एक वन्यजीव अभयारण्य है. ये आतंकी हाल के दिनों में जंगल से यहाँ पहुँचे थे. सूत्रों का कहना है कि जब उस इलाके में तीन आतंकियों के छिपे होने का शक हुआ, तो इसकी पुष्टि के लिए एक `हीट सिग्नेचर ड्रोन` इलाके में चक्कर लगा रहा था. `हीट सिग्नेचर ड्रोन` को `थर्मल ड्रोन` भी कहा जाता है, जो थर्मल कैमरों से लैस होता है, जो इंफ्रारेड रेडिएशन के ज़रिए किसी वस्तु की गर्मी का पता लगाकर यह पता लगा सकता है कि वह वस्तु क्या हो सकती है.

लेकिन, इस काम में सुरक्षा बलों और पुलिस के लिए वंजाराओं द्वारा दी गई जानकारी सबसे ज़्यादा मददगार साबित हुई, जिसने उन्हें वहाँ की हर गतिविधि से अवगत कराया. इन वंजाराओं ने कारगिल में पाकिस्तान की नापाक हरकतों का भी पर्दाफाश किया था. हालाँकि, सूत्रों ने बताया कि वंजाराओं से मिले इनपुट के आधार पर इलाके की इस तरह से घेराबंदी की गई थी कि आतंकियों को कोई सिग्नल न मिल सके. जानकारी के मुताबिक, लश्कर कमांडर सुलेमान, हमजा अफगानी और जिबरान सोमवार सुबह करीब 11.30 बजे एक अस्थायी तंबू में आराम कर रहे थे और मुठभेड़ में मारे गए. तीनों पाकिस्तानी नागरिक थे और सुलेमान को लश्कर ने मुरीदके स्थित अपने आतंकवादी मुख्यालय में प्रशिक्षित किया था.


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