महाकुंभ विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और पवित्र संगम में स्नान करने आते हैं.
इतनी बड़ी संख्या में लोगों की उपस्थिति के कारण घाटों पर काफी कचरा जमा हो जाता है, जिससे पर्यावरण को भी खतरा होता है.
इस चुनौती को समझते हुए हेमकुंट फाउंडेशन की टीम ने पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ घाटों की सफाई का कार्य किया.
स्वयंसेवकों ने कचरा उठाने, गंदगी हटाने और स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
यह पहल केवल सफाई अभियान तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह सामाजिक सौहार्द और धार्मिक एकता को मजबूत करने का संदेश भी दे रही थी.
हेमकुंट फाउंडेशन के संस्थापक हरतीरथ सिंह ने इस अभियान पर प्रकाश डालते हुए कहा: "सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है. हमारा धर्म हमें यह सिखाता है कि हम मानवता की सेवा करें, बिना किसी भेदभाव के. महाकुंभ के घाटों की सफाई केवल एक अभियान नहीं था, बल्कि यह पवित्र स्थलों का सम्मान करने और समाज में एकता का संदेश फैलाने का प्रयास था."
यह पहल न केवल धार्मिक एकता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि सेवा के कार्य में कोई भी व्यक्ति, किसी भी समुदाय से जुड़कर योगदान दे सकता है.
हेमकुंट फाउंडेशन की इस पहल की स्थानीय प्रशासन, श्रद्धालुओं और महाकुंभ में आए यात्रियों ने भूरी-भूरी प्रशंसा की.
श्रद्धालुओं ने स्वयंसेवकों के समर्पण की सराहना करते हुए कहा कि इस सेवा से घाटों की पवित्रता बनी रहेगी और लाखों भक्तों को एक स्वच्छ और सुरक्षित वातावरण मिलेगा.
महाकुंभ में निस्वार्थ सेवा के इस कार्य ने यह साबित कर दिया कि जब उद्देश्य पवित्र और निष्कलंक होता है, तो हर समुदाय और हर धर्म की सीमाएं मिट जाती हैं.
यह पहल हमें याद दिलाती है कि सच्ची आस्था केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं होती, बल्कि दूसरों की भलाई के लिए किए गए कर्मों में भी प्रकट होती है.
हेमकुंट फाउंडेशन का यह कदम आने वाले वर्षों में भी लोगों को प्रेरित करेगा कि धर्म और मानवता एक-दूसरे के पूरक हैं, और सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं.
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