कानपुर में ब्रिटिश काल से चली आ रही है ये होली.
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में होली का अलग-अलग ही माहौल होता है. यहां बृज की होली, कोशी की मसान की होली, लट्ठ मार होरी के साथ ही प्रसिद्ध है कानपुर के गंगा मेला की होली. ब्रिटिश काल से चली यह परंपरा कायम है.
इस मेले में हटिया समेत कई इलाकों में रंगों का ठेला निकालकर जी भर के होली खेली जाती है. इस उत्सव के लिए हटिया प्रसिद्ध है, हालांकि हटिया ही नहीं बल्कि शहर के अलग-अलग हिस्सों में ये होली खेली जाती है.
पूरे देश में होली की धूम देखने को मिलती है. हालांकि गंगा मेला को लेकर कुछ लोगों को मानना है कि कनपुरियों ने अंग्रेजों की हुकूमत के खिलाफ रंगों को हथियार बनाकर फिरंगियों से 5 दिनों तक लड़ाई लड़ी थी. इस लड़ाई में जीतने की खुशी में भी ये मेला होता है.
गंगा मेला बीते 81 सालों से मनाया जा रहा है. इस साल 82वां गंगा मेला है जो इतिहास देश आजादी से भी पुराना है. देश में 1947 में आजादी मिली थी.
कानपुर की होली का इतिहास ब्रिटिश समय का है. इस होली की शुरुआत विरोध में हुई और तब से होलिका दहन और रंगोत्सव के बाद कानपुर में पूरे सात दिन तक यह रंगोत्सव चलता है और गंगा मेला के दिन खत्म होता है.
कुछ लोगों का मानना है कि साल 1942 में अंग्रेजों ने होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बाद कानपुर के युवाओं ने जमकर इसका विरोध किया और होली खेली. अंग्रेजी हुकूमत ने उनको जेल में डाल दिया.
अंग्रेजी हुकूमत को हार माननी पड़ी. वहीं, लोगों का मौलिक अधिकार बताकर गिरफ्तार किए गए लोगों को रिहा कर दिया था. तभी से गंगा मेला के दिन लोगों ने होली खेलना शुरु कर दिया था.
ऐतिहासिक गंगा मेला अनुराधा नक्षत्र में मनाया जाता है. इस साल यह मेला 30 मार्च को हुआ और युवाओं ने इस दिन जमकर होली भी खेली.