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बहार-ए-उर्दू 2025 का भव्य समापन, अनूप जलोटा के साथ उर्दू साहित्य अकादमी का खूबसूरत जादुई मंजर

Updated on: 09 October, 2025 06:08 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

शुरुआत हुई जोश और जज़्बे से भरे इंटर-कॉलेजिएट बैतबाज़ी मुकाबले से, जहाँ महाराष्ट्र के विभिन्न कॉलेजों के नौजवान शायरों ने उर्दू के अदीबों को अपने अल्फ़ाज़ से सलाम किया.

बहार-ए-उर्दू 2025

बहार-ए-उर्दू 2025

जब डोम एसवीपी स्टेडियम की सुनहरी रोशनी शाम की नर्म हवा में घुली, तो बहार-ए-उर्दू 2025 का अंतिम अध्याय खुला — और इसके साथ ही मनाया गया महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी के 50 सुनहरे वर्ष. यह शाम थी शब्दों, शायरी, सुरों और एहसास की — जिसने मुंबई को उर्दू की खुशबू में डुबो दिया. दिन की शुरुआत हुई जोश और जज़्बे से भरे इंटर-कॉलेजिएट बैतबाज़ी मुकाबले से, जहाँ महाराष्ट्र के विभिन्न कॉलेजों के नौजवान शायरों ने उर्दू के अदीबों को अपने अल्फ़ाज़ से सलाम किया. मेज़बान शमिम इक़बाल मोमिन और मुख़लिस माडू ने इस मुशायरे को ऐसी रवानी दी कि लगा — उर्दू की रूह आज भी इन दिलों में ज़िंदा है.

इसके बाद मंच सजा इक़बाल नियाज़ी के नाट्य प्रस्तुति ज़मीन का एक टुकड़ा के लिए — एक ऐसी कहानी जिसने इंसानियत, दर्द और अपनेपन की दास्तां को संवेदनशीलता से पिरोया. फिर मुस्कुराहटों की बारी आई, जब हास्य कवि कलीम समर ने अपनी ज़ुबान की नर्मी और लफ़्ज़ों की चमक से सबको हंसी में डुबो दिया. 


मोनिका सिंह, अतिरिक्त कलेक्टर, सोलापुर, ने अपने अशआर से शाम में नज़ाकत और नूर दोनों भर दिए. और फिर — हवा में ख़ामोशी उतर आई. अनूप जलोटा, सुरों के बादशाह, मंच पर आए. हर ग़ज़ल, हर आलाप के साथ उन्होंने डोम को भक्ति, मोहब्बत और यादों के समुंदर में बदल दिया. उन्होंने उर्दू की रूह को यूँ बयान किया  — “उर्दू कोई ज़ुबान नहीं, वो साँस है जो दिल के गाने के साथ चलती है.”



इसके बाद शेखर सुमन और प्रिया मलिक की मेज़बानी में हुआ अवार्ड सेरेमनी, जहाँ उर्दू के कवियों, शिक्षकों, पत्रकारों और लेखकों को उनके अद्वितीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया. हर अवार्ड, उर्दू की आधी सदी की मेहनत और मुहब्बत को सलाम था. अंत में शबाब सबरी की क़व्वाली ने डोम एसवीपी स्टेडियम को इबादतगाह में बदल दिया — जहाँ सुर दुआ बन गए, ताल सजदा बन गई, और उर्दू फिर अमर हो गई.

जब राष्ट्रगान की गूंज फैली और परदे गिरे, तो बहार-ए-उर्दू अपने पीछे सिर्फ़ तालियाँ नहीं छोड़ गया —


वो छोड़ गया एक वादा.
एक वादा कि उर्दू मुंबई की रगों में बहती रहेगी,
हर शायर की साँस में गूँजती रहेगी,
और हर बार फिर जन्म लेगी — जब भी कोई नया शेर लिखा जाएगा.

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