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एक पलभर की ख़ामोशी से कैसे जन्मा रांझणा का सबसे यादगार सीन, निर्देशक ने किया खुलासा

Updated on: 21 June, 2025 09:52 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

आज, जब हम `रांझणा` के 12 साल पूरे होने का वर्षगाँठ मना रहे हैं, तो उन पलों को फिर याद किए बिना नहीं रहा जा सकता है जिन्होंने इसे प्रतिष्ठित बनाया.

रांझणा

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बारह साल पहले, एक ऐसी फिल्म आई जिसने भारतीय सिनेमा में प्यार की भाषा बदल दी. रांझणा सिर्फ़ एक कहानी नहीं थी; यह एक ऐसा अनुभव था जो बनारस की संकरी गलियों से गुज़रा और दर्शकों के दिलों में हमेशा के लिए बस गया. आज, जब हम `रांझणा` के 12 साल पूरे होने का वर्षगाँठ मना रहे हैं, तो उन पलों को फिर से याद किए बिना नहीं रहा जा सकता है जिन्होंने इसे प्रतिष्ठित बनाया, और ऐसा ही एक सीन गंगा घाट की हलचल, भावना और एक मौन चमत्कार से पैदा हुआ था.

निर्देशक आनंद एल राय, जो साधारण से असाधारण निकालने की कला में माहिर हैं, उन्होंने हाल ही में फिल्म के एक अत्यंत भावुक दृश्य के पीछे की कहानी साझा की — वह क्षण जब बड़ा कुंदन अपने बचपन के कुंदन से मिलता है. यह दृश्य स्क्रिप्ट में पहले से नहीं था, लेकिन फिल्म के भावनात्मक क्लाइमेक्स का सबसे यादगार सीन बन गया.


आनंद बताते हैं: "भावना स्क्रिप्ट में हमेशा से थी, लेकिन उसका दृश्य नहीं. उस दिन हिमांशु (शर्मा) और मैं झगड़ रहे थे. मुझे क्लाइमैक्स का हिस्सा अब तक नहीं मिला था, और वह बनारस में हमारा आखिरी शूटिंग डे था. हिमांशु अक्सर कहता था कि ‘कल दे दूंगा’, लेकिन जब मैं अगले दिन गया, तो उसने अब भी सीन नहीं लिखा था. मैंने उससे कहा, ‘मैं बनारस से तब तक नहीं जाऊँगा जब तक ये सीन शूट नहीं कर लेता.एक-दो घंटे बाद, हिमांशु गंगा घाट पर आया जहाँ मैं शूटिंग कर रहा था, और उसने वो सीन सुनाया. जब मैंने उसे सुना, तो मैं इतना भावुक हो गया — हमारी चाय वहीं रखी-रखी ठंडी हो गई — और मैं चुपचाप उठकर चला गया. मैंने पूरी यूनिट से कहा, आज के शेड्यूल से ब्रेक लो. वहीं उस दृश्य की रेखाओं ने मुझे उसका दृश्य दे दिया."


वह दृश्य, काव्यात्मक, उदासी भरा और गहराई से भरा हुआ, `रांझणा` के सबसे अविस्मरणीय पलों में से एक बन गया. और यह आनंद एल राय, लेखक हिमांशु शर्मा और फिल्म की आत्मा धनुष के बीच रचनात्मक केमिस्ट्री का प्रमाण है. कलर येलो प्रोडक्शंस द्वारा निर्मित, `रांझणा` सिर्फ एक प्रेम कहानी से कहीं बढ़कर बन गई. यह जुनून, लालसा और बलिदान के बारे में एक फिल्म थी, जिसे संगीतमय जादू और बेहतरीन कहानी कहने के माध्यम से एक साथ रखा गया था. इरशाद कामिल के तीखे बोलों से लेकर ए.आर. रहमान के अविस्मरणीय स्कोर तक, `रांझणा` की हर बीट आज भी प्रशंसकों के दिलों में गूंजती है.

जैसे-जैसे `रांझणा` फिल्म 12 साल पूरे करती है, यह सिर्फ एक याद नहीं बनती, बल्कि यह एहसास है कि कैसे सिनेमा, जब ईमानदारी और रचनात्मक जुनून से से जन्म लेता है, तो वह समय की सीमा से परे हो जाता है. और शायद `रांझणा` एक फिल्म नहीं, बल्कि एक याद थी — एक ऐसी भावना जिसे हम बार-बार लौटकर महसूस करते हैं.


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