Updated on: 06 November, 2025 03:17 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
‘जटाधारा’ एक ऐसी फिल्म है जो भारतीय सिनेमा में रहस्य, अध्यात्म और विज्ञान का नया मेल पेश करती है. निर्देशक वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने अनंथा पद्मनाभस्वामी मंदिर की पृष्ठभूमि में ‘पिशाच बंधन’ जैसे अनुष्ठान को गहराई से दिखाया है.
Jatadhara Movie
आज जब निर्देशक कुछ नया करने की कोशिश करते हैं, तो दर्शक भी उन्हें खुले दिल से मौका देते हैं. यही भरोसा भारतीय सिनेमा को लगातार आगे बढ़ा रहा है. इसी साहसी सोच का नतीजा है ‘जटाधारा’, एक ऐसी फिल्म जो कल्पना की सीमाएँ तोड़ते हुए विश्वास और विज्ञान के बीच खड़ा कर देती है.
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निर्देशक – वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल
लेखक – वेंकट कल्याण
मुख्य कलाकार – सुधीर बाबू, सोनाक्षी सिन्हा, दिव्या खोसला, शिल्पा शिरोडकर, इंदिरा कृष्णा, राजीव कणकाला, रवि प्रकाश, रोहित पाठक, झांसी, सुभालेखा सुधाकर
रेटिंग – 3 स्टार्स
अवधि – 135 मिनट
फिल्म की कहानी अनंथा पद्मनाभस्वामी मंदिर के रहस्यमय तहखानों से शुरू होकर एक प्राचीन अनुष्ठान ‘पिशाच बंधन’ के इर्द-गिर्द घूमती है, जो आत्माओं को खजाने की रक्षा के लिए बाँधने का तरीका है. निर्देशक वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने इस रहस्यमय दुनिया को बारीकी और गहराई से पर्दे पर उतारा है. हर प्रतीक, हर मंत्र और हर निर्णय के पीछे एक दर्शन छिपा है, जो फिल्म को केवल रहस्य तक सीमित नहीं रखता बल्कि जीवन, मृत्यु और आत्मा के अस्तित्व पर सवाल उठाता है.
‘जटाधारा’ की रीढ़ साई कृष्ण कर्णे और श्याम बाबू मेरिगा के संवाद हैं, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करते हैं. हर संवाद रहस्य, अध्यात्म और मानवीय भावनाओं का संगम है. सुधीर बाबू ने शिवा के किरदार में वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का अद्भुत मेल दिखाया है. उनका शांत चेहरा और गहरी भावनाएँ फिल्म को और प्रभावशाली बनाती हैं.
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सोनाक्षी सिन्हा का धन पिशाची अवतार फिल्म का सबसे बड़ा सरप्राइज है. वह किरदार जितना आकर्षक है, उतना ही भयावह भी. सोनाक्षी ने अपने हावभाव और आवाज से इस आत्मा को जीवंत बना दिया है. दिव्या खोसला कुमार, शिल्पा शिरोडकर और इंदिरा कृष्णा ने अपने सधे अभिनय से फिल्म में भावनात्मक गहराई जोड़ी है.
राजीव राज का संगीत फिल्म की आत्मा है. “शिव स्तोत्रम” का रौद्र सौंदर्य और “पल्लो लटके अगेन” की लयात्मकता फिल्म में भक्ति और भय को एक साथ जोड़ देती है. बैकग्राउंड स्कोर इतना प्रभावशाली है कि यह संवादों से भी ज़्यादा असरदार साबित होता है.
समीर कल्याणी की सिनेमैटोग्राफी हर फ्रेम को रहस्यमय पेंटिंग में बदल देती है. मंदिर के अंधेरे गलियारे, धुएं और रोशनी का मेल दर्शकों को उस रहस्यमय वातावरण में डूबो देता है. VFX और साउंड डिज़ाइन इतनी सटीकता से तैयार किए गए हैं कि दर्शक खुद को उसी मंदिर के बीच महसूस करते हैं.
‘जटाधारा’ के एक्शन दृश्यों में भी एक अनुष्ठानिक ऊर्जा झलकती है. सुधीर बाबू के भूत-शिकार दृश्य किसी आध्यात्मिक युद्ध की तरह प्रतीत होते हैं.
वेंकट कल्याण और अभिषेक जायसवाल ने डर और भक्ति, विज्ञान और अध्यात्म को जोड़ते हुए भारतीय सिनेमा में एक नया अध्याय लिखा है. उनका निर्देशन आत्मविश्वास से भरा है — चाहे वह वैज्ञानिक उपकरणों की जांच हो या तांत्रिक अनुष्ठान का रहस्य.
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ज़ी स्टूडियोज़ और प्रेरणा अरोड़ा द्वारा प्रस्तुत ‘जटाधारा’ ऐसी फिल्म है जिसे आप सिर्फ देखते नहीं, बल्कि महसूस करते हैं. यह फिल्म आपको सोचने पर मजबूर करती है — क्या विज्ञान सब कुछ समझ सकता है या कुछ चीज़ें सिर्फ विश्वास से ही जानी जा सकती हैं.
अगर आप इस वीकेंड थिएटर में कुछ अलग, गहरा और आत्मा को छू लेने वाला अनुभव करना चाहते हैं, तो ‘जटाधारा’ आपके लिए परफेक्ट फिल्म है. यह रहस्य का अनुभव कराएगी, भक्ति का स्पर्श देगी और आपके भीतर छिपे सवालों को जागृत कर देगी. आप थिएटर से बाहर निकलेंगे — लेकिन ‘जटाधारा’ आपके साथ रहेगी.
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