Updated on: 21 October, 2025 09:52 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
‘थामा’ फिल्म दिवाली पर दर्शकों को एक अनोखा सिनेमाई अनुभव देती है. हॉरर, इमोशन और एडवेंचर के शानदार मिश्रण के साथ यह कहानी एक रहस्यमयी जंगल में घटती है, जहां डर और दिल दोनों साथ चलते हैं.
Thamma Movie
Thamma Movie Review: हर साल दिवाली पर हम कुछ नया, कुछ खास देखने की तलाश में रहते हैं — कुछ ऐसा जो पूरे परिवार के साथ बैठकर देखा जा सके, जिसमें एंटरटेनमेंट भी हो, इमोशन भी हो, और थोड़ा-सा रहस्य भी हो. इस बार, मैडॉक फिल्म्स आपके लिए एक बिल्कुल अलग और रोमांचक अनुभव लेकर आई है – ‘थामा’, जो सिर्फ एक हॉरर फिल्म नहीं है, बल्कि एक ऐसा सफर है जिसमें डर भी है, दिल भी है.
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निर्देशक – आदित्य सरपोतदार
लेखक – निरेन भट्ट, सुरेश मैथ्यू, अरुण फालारा
कलाकार – आयुष्मान खुराना, रश्मिका मंदाना, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, परेश रावल, सत्यराज, फैज़ल मलिक, गीता अग्रवाल, रचित सिंह
समय – 149 मिनट
रेटिंग – 4
‘थामा’ की कहानी एक रहस्यमयी जंगल में शुरू होती है, जहां पुरानी कहानियाँ और भूली हुई मान्यताएँ फिर से ज़िंदा होने लगती हैं. यह कोई साधारण जंगल नहीं, बल्कि एक ऐसा इलाका है जहां हर पेड़, हर आवाज़, हर छाया कुछ छुपा रही है. फिल्म की शुरुआत थोड़ी हल्की-फुल्की होती है, पर जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, दर्शक उसमें पूरी तरह डूब जाते हैं.
यह फिल्म न सिर्फ एक किरदार की कहानी है, बल्कि एक पूरी दुनिया की है — जिसमें अपने नियम हैं, रहस्यमयी प्राणी हैं, और पुरानी कहानियों से जुड़ी गहराई है.
आयुष्मान खुराना इस बार भी अपने अलग अंदाज़ में नज़र आते हैं. एक छोटे शहर का पत्रकार जो खुद नहीं जानता कि उसकी ज़िंदगी किस मोड़ पर मुड़ने वाली है. शुरुआत में वह हल्का-फुल्का, मज़ाकिया और ज़मीन से जुड़ा लगता है, लेकिन जैसे ही वह इस रहस्यमयी जंगल की दुनिया में घुसता है, उसका किरदार गहराई पकड़ता है. यह रोल आयुष्मान के लिए एक नया मोड़ है, और उन्होंने उसे पूरे आत्मविश्वास के साथ निभाया है.
रश्मिका मंदाना फिल्म की जान हैं. उनका किरदार न सिर्फ खूबसूरत है बल्कि मजबूत भी है. एक ऐसा रोल जिसमें नर्मी भी है और ज़रूरत पड़ने पर आग भी. वो न सिर्फ आयुष्मान के साथ अच्छा तालमेल बिठाती हैं, बल्कि अपनी खुद की मौजूदगी से स्क्रीन को रोशन कर देती हैं.
सपोर्टिंग कास्ट की बात करें तो परेश रावल अपने चिर-परिचित अंदाज़ में एक मज़ेदार लेकिन खरे पिताजी के किरदार में हैं, जो हर बार अपने डायलॉग से हँसने पर मजबूर कर देते हैं.नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का किरदार रहस्यमयी है, और ऐसा लगता है कि ये कैरेक्टर आगे चलकर और बड़ा होने वाला है इस यूनिवर्स में.सत्यराज एक बार फिर "एल्विस" के रूप में लौटते हैं, और इस बार सिर्फ मज़ाक नहीं, बल्कि यूनिवर्स के राज भी उनके पास हैं.नौरा फतेही का कैमियो छोटा है लेकिन असरदार. उनका किरदार "स्त्री" से जुड़ा हुआ है और आगे कुछ बहुत बड़ा खुलासा करने वाला लगता है.
‘थामा’ उस यूनिवर्स का हिस्सा है जिसे पहले हमने स्त्री, फिर भेड़िया, और अब थामा में धीरे-धीरे पनपते देखा है. इस फिल्म में ऐसे कई मोड़ हैं जो आने वाली फिल्मों के लिए बीज बोते हैं.
भेड़िया (वरुण धवन) और आलोक (आयुष्मान) के बीच की लड़ाई फिल्म का सबसे बड़ा सीन है — सिनेमैटिक, तेज़, और दिल थाम लेने वाला. और जब ‘सर कटा’ की एंट्री होती है — वो जो “स्त्री” में देखा गया था — तो थिएटर में हर कोई हैरान रह जाता है. यही वो पल है जब समझ आता है कि ये सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक बहुत बड़े प्लान का हिस्सा है.
फिल्म का म्यूज़िक बहुत सोच-समझकर रखा गया है. कोई गाना जबरदस्ती नहीं डाला गया है. VFX और प्रोडक्शन डिज़ाइन भी उच्च स्तर के हैं. फिल्म में कई सीन ऐसे हैं जो भारतीय फिल्मों में कम ही देखने को मिलते हैं — खासकर हॉरर-जॉनर में.
डायरेक्टर आदित्य सरपोतदार ने हॉरर फिल्म बनाने के पुराने ढर्रे को तोड़ा है. यहाँ ना चीखें हैं, ना ज़बरदस्ती का म्यूज़िक, ना ही बेमतलब डराने वाले चेहरे. डर यहाँ माहौल से आता है, कहानी से आता है, और सबसे बड़ी बात — भावनाओं से जुड़ा होता है.
‘थामा’ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक अनुभव है.यह उन गिनी-चुनी फिल्मों में से एक है जो डराते हुए भी मन को छू जाती हैं.इसमें हंसी है, रहस्य है, मजबूत परफॉर्मेंस है, और एक यूनिवर्स है जो हर फिल्म के साथ और बड़ा हो रहा है.
दिनेश विजन की सोच की तारीफ करनी पड़ेगी — भारतीय हॉरर को उन्होंने सिर्फ डरावना नहीं, बल्कि दिलचस्प, एंटरटेनिंग और कल्चर से जुड़ा बना दिया है.
परिवार के साथ बैठिए, इस फिल्म को देखिए और महसूस कीजिए कि हॉरर भी दिल से जुड़ सकता है.
‘थामा’ उस दिशा में एक बड़ा कदम है जहाँ भारतीय सिनेमा ना सिर्फ आगे बढ़ रहा है, बल्कि नया इतिहास भी रच रहा है.
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