Updated on: 03 October, 2024 10:54 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
नवरात्रि के पहले दिन, जिसे प्रतिपदा कहा जाता है, मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा के इस रूप का संबंध हिमालय से है, और वह वृषभ पर सवार होकर त्रिशूल और कमल धारण करती हैं.
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नवरात्रि का पहला दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है. यह नौ दिनों का उत्सव देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है, जो शक्ति, साहस और धैर्य की प्रतीक मानी जाती हैं. नवरात्रि शब्द का अर्थ होता है `नौ रातें,` और यह उत्सव साल में दो बार मनाया जाता है—चैत्र नवरात्रि व शारदीय नवरात्रि. विशेष रूप से शारदीय नवरात्रि, जो अश्विन माह में आती है, देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा के लिए प्रसिद्ध है.
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पहले दिन को `प्रतिपदा` के नाम से जाना जाता है, और इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. शैलपुत्री, देवी दुर्गा का पहला रूप मानी जाती हैं, जिनका जन्म हिमालय पर्वत के राजा हिमवान के घर हुआ था. शैल का अर्थ `पर्वत` होता है, और पुत्री का अर्थ `बेटी,` इसलिए उन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. वह वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं और उनके एक हाथ में त्रिशूल व दूसरे हाथ में कमल होता है.
नवरात्रि का पहला दिन शुभ माना जाता है, और इसे शुभ कार्यों के आरंभ के लिए आदर्श माना जाता है. इस दिन लोग अपने घरों में कलश स्थापना करते हैं, जिसे `घटस्थापना` कहा जाता है. यह कलश देवी दुर्गा का प्रतीक होता है, और इसे घर के पूजा स्थल पर स्थापित किया जाता है. कलश के साथ ही जौ (बार्ली) बोए जाते हैं, जो समृद्धि और शुभता का प्रतीक माने जाते हैं. इन नौ दिनों तक कलश की पूजा की जाती है, और अंत में जौ के अंकुरण को देखकर भविष्य की समृद्धि का आकलन किया जाता है.
मां शैलपुत्री की पूजा करने से भक्तों को धैर्य, शांति और शक्ति प्राप्त होती है. श्रद्धालु व्रत रखते हैं और देवी के सामने भक्ति भाव से नतमस्तक होते हैं. नवरात्रि का यह पहला दिन आध्यात्मिक आरंभ का प्रतीक है, जहां भक्त देवी दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करके अपनी भौतिक और आध्यात्मिक समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश करते हैं.
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