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जब यमुना ने श्रीकृष्ण को अपनाया, बनीं श्रद्धा और मोक्ष की प्रतीक

Updated on: 15 March, 2025 11:20 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

जब वसुदेव नवजात श्रीकृष्ण को गोकुल ले जा रहे थे, तब यमुना ने उनके चरण स्पर्श की इच्छा से अपनी लहरें उठाईं, और कृष्ण के स्पर्श मात्र से वे और अधिक पवित्र हो गईं.

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यमुना, जो स्वयं सूर्यदेव की पुत्री और यमराज की बहन मानी जाती हैं, हिंदू धर्म में एक पवित्र नदी और देवी के रूप में पूजित हैं. उनकी महिमा और श्रीकृष्ण से जुड़ी उनकी कथा अत्यंत रोचक और आध्यात्मिक रूप से प्रेरणादायक है.

पुराणों के अनुसार, यमुना जल की देवी हैं, और उनकी पवित्रता का प्रभाव इतना शक्तिशाली है कि वह स्वयं पापों का नाश कर देती हैं. उनका जल अमृततुल्य माना जाता है. उनकी कृपा से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.


यमुना का श्रीकृष्ण से एक विशेष संबंध है, क्योंकि उनका जन्म मथुरा में हुआ था, और उनकी बाल लीलाएँ यमुना के तट पर ही संपन्न हुई थीं. जब वसुदेव नवजात कृष्ण को गोकुल ले जाने के लिए यमुना पार कर रहे थे, तब यमुना ने उनके चरण स्पर्श की इच्छा से अपनी लहरों को उठाया था. श्रीकृष्ण के स्पर्श मात्र से यमुना और भी पवित्र हो गईं.


यमुना से विवाह और पूजनीय देवी बनना

भागवत पुराण के अनुसार, जब श्रीकृष्ण ने द्वारका में अपनी लीलाएँ संपन्न कर लीं, तब यमुना ने उनसे विवाह की इच्छा व्यक्त की. वह एक महान देवी होते हुए भी भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से आध्यात्मिक रूप से जुड़ना चाहती थीं. श्रीकृष्ण ने उनका अनुरोध स्वीकार किया और उन्हें अपनी पटरानी के रूप में सम्मान दिया. इस विवाह के बाद, यमुना केवल एक पवित्र नदी ही नहीं, बल्कि एक पूजनीय देवी के रूप में प्रतिष्ठित हो गईं.


यमुना का विवाह श्रीकृष्ण से केवल सांसारिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण था. यह विवाह जीवात्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक है, जहाँ भक्त रूपी यमुना परमात्मा श्रीकृष्ण से एकाकार होती हैं.

यमुना पूजन का महत्व

आज भी यमुना का पूजन विशेष रूप से कार्तिक माह में किया जाता है. गोवर्धन पूजा के दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि यह मोक्ष प्रदान करने वाली मानी जाती है. उनके तट पर बसे मंदिर और घाट श्रद्धालुओं की भक्ति और आस्था के केंद्र हैं.

इस प्रकार, श्रीकृष्ण से विवाह के कारण यमुना केवल जल की देवी नहीं रहीं, बल्कि भक्तों के लिए मोक्षदायिनी और पूजनीय देवी बन गईं.

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