महाकुंभ का यह अमृत स्नान आध्यात्मिक आस्था और परंपराओं से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अवसर रहा.
बसंत पंचमी के दिन महाकुंभ में नागा साधुओं की पेशवाई देखने लायक थी. हर बार की तरह इस बार भी वे अनूठे शृंगार और परंपरागत हथियारों के साथ संगम में स्नान के लिए निकले.
उनका प्रवेश श्रद्धालुओं के लिए एक दिव्य अनुभव रहा. अखाड़ों के संतों और नागा साधुओं ने विधि-विधान से त्रिवेणी संगम में स्नान किया, जिसके बाद वे अपने-अपने अखाड़ों की ओर लौट गए.
बसंत पंचमी के दिन प्रयागराज में आस्था का महासंगम देखने को मिला. लाखों भक्त सुबह से ही संगम में स्नान के लिए उमड़ पड़े.
अब तक 35 करोड़ से अधिक श्रद्धालु महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं, जिससे यह आयोजन ऐतिहासिक बन गया है.
स्नान के साथ श्रद्धालुओं ने पूजा-अर्चना की और दान-पुण्य किया. मंदिरों और घाटों पर भजन-कीर्तन का माहौल देखने को मिला. गंगा आरती और महामंत्रों के उच्चारण से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय बन गया.
भीड़ को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने कड़े इंतजाम किए थे. संगम क्षेत्र और विभिन्न घाटों पर सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की गई थी. ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से सुरक्षा की निगरानी की गई, ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके.
बसंत पंचमी को विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी सरस्वती की आराधना का दिन माना जाता है. इस दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करना विशेष पुण्यदायी माना जाता है. मान्यता है कि इस दिन स्नान करने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और समस्त पापों का नाश हो जाता है.
महाकुंभ 2025 का आयोजन अब अपने अंतिम चरण में पहुंच चुका है. भक्तों और साधु-संतों के महासंगम ने इसे विश्व के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक बना दिया है. इस महाकुंभ के दौरान विभिन्न धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियां भी आयोजित की जा रही हैं.
बसंत पंचमी पर हुए इस अमृत स्नान के साथ महाकुंभ का महत्वपूर्ण चरण समाप्त हो गया है, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था का कारवां अब भी जारी है. प्रयागराज में यह ऐतिहासिक आयोजन आने वाले वर्षों तक भक्तों के दिलों में एक पवित्र स्मृति के रूप में बसा रहेगा.
ADVERTISEMENT