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उपभोक्ता अदालत ने बीमा कंपनी को फटकारा, सेवानिवृत्त पुलिसकर्मी को 72,220 रुपये भुगतान के आदेश दिए

Updated on: 10 October, 2025 03:26 PM IST | Mumbai
Samiullah Khan | samiullah.khan@mid-day.com

सिंधुदुर्ग जिला उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग ने सेवानिवृत्त पुलिस उप-निरीक्षक विलास हरिश्चंद्र सावंत के बीमा दावे को नकारने पर न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को फटकार लगाई और उन्हें 72,220 रुपये ब्याज सहित तथा मानसिक कष्ट और मुकदमेबाजी खर्च के लिए 35,000 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया.

Pic/By Special Arrangement

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सिंधुदुर्ग स्थित जिला उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को एक सेवानिवृत्त पुलिस उप-निरीक्षक को 72,220 रुपये 10.9 प्रतिशत ब्याज सहित, मानसिक कष्ट और मुकदमेबाजी खर्च के लिए 35,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है. इस पुलिस उप-निरीक्षक को चिकित्सा दावे की पूरी प्रतिपूर्ति देने से इनकार कर दिया गया था.

यह आदेश मुंबई पुलिस के सेवानिवृत्त उप-निरीक्षक और सिंधुदुर्ग के कंकावली निवासी 63 वर्षीय विलास हरिश्चंद्र सावंत द्वारा दायर एक शिकायत पर पारित किया गया. 15 दिसंबर, 2023 को दायर इस मामले में आयोग की अध्यक्ष इंदुमती श्रेयस मालुश्ते और सदस्य योगेश यशवंत खादिलकर ने फैसला सुनाया.


फरवरी 2017 में सेवानिवृत्त हुए सावंत की एक ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी 25 जुलाई, 2022 से 24 जुलाई, 2023 तक वैध थी. उन्हें 29 नवंबर, 2022 को फोर्टिस अस्पताल, मुलुंड में भर्ती कराया गया और 3 दिसंबर, 2022 को छुट्टी दे दी गई, जिस पर कुल 2.31 लाख रुपये का खर्च आया. हालाँकि, बीमाकर्ता ने केवल 97,414 रुपये ही स्वीकृत किए, जिसके कारण उन्हें शेष राशि की प्रतिपूर्ति के लिए आयोग का रुख करना पड़ा.



22 दिसंबर, 2023 को नोटिस दिए जाने के बावजूद, बीमाकर्ता निर्धारित 45 दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने में विफल रहा, जिसके परिणामस्वरूप 13 मार्च, 2024 को एकपक्षीय आदेश जारी किया गया. आयोग ने पाया कि कंपनी ने बिना किसी स्पष्टीकरण या सहायक दस्तावेजों के जाँच, नर्सिंग और सलाहकार शुल्क जैसे मदों में अनुचित कटौती की थी.

न्यू इंडिया फ्लेक्सी फ्लोटर ग्रुप मेडिक्लेम पॉलिसी के नियम 3.0 और 4.4.1 का हवाला देते हुए, पीठ ने माना कि बीमाकर्ता ने गलत तरीके से 72,220 रुपये की कटौती की, जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 2(7) और 2(42) के तहत सेवा में कमी के बराबर है.


11 सितंबर, 2025 के अपने आदेश में, आयोग ने बीमाकर्ता को 24 जनवरी, 2023 से 10.9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ 72,220 रुपये और मुआवजे व मुकदमेबाजी की लागत के लिए 45 दिनों के भीतर अतिरिक्त 35,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. ऐसा न करने पर 10.6 प्रतिशत ब्याज लगेगा और अधिनियम की धारा 71 और 72 के तहत कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है.

पुलिस बल से संघर्ष तक

सावंत, जो 1983 में मुंबई पुलिस में भर्ती हुए और 2017 में जोगेश्वरी पुलिस स्टेशन से सब-इंस्पेक्टर के पद से सेवानिवृत्त हुए, ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि दशकों की सेवा के बाद उन्हें अपने चिकित्सा अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ेगा. अपने गृहनगर में पैर में फ्रैक्चर होने के बाद, उनका इलाज मुंबई के फोर्टिस अस्पताल में हुआ, जहाँ बिल 2.31 लाख रुपये आया. उन्होंने कहा, "मैंने सभी आवश्यक दस्तावेज़ और रसीदें जमा कर दीं, फिर भी उन्होंने बिना किसी स्पष्टीकरण के मनमाने ढंग से राशि काट ली."

उन्होंने आगे बताया कि अक्टूबर 2022 में नागवेकर अस्पताल, कंकावली में भर्ती होने पर उन्हें 37,000 रुपये और खर्च करने पड़े, लेकिन बीमा कंपनी ने फिर से पूरी राशि देने से इनकार कर दिया. सावंत ने कहा, "मैंने किसी तरह अस्पताल का बिल चुकाया और छुट्टी पा ली. बार-बार फोन करने और पत्र लिखने के बावजूद, कंपनी ने मेरी बात अनसुनी कर दी. मेरे पास उपभोक्ता अदालत जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था."

सावंत ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 35 के तहत शिकायत दर्ज कराई, जिसमें मानसिक उत्पीड़न के लिए प्रतिपूर्ति और हर्जाने की मांग की गई. आयोग ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया और कटौतियों को "मनमाना और अनुचित" बताया. फैसले के बाद उन्होंने कहा, "मैं अदालत के फैसले से खुश हूँ. मैंने सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं, बल्कि इसलिए भी लड़ाई लड़ी ताकि मेरे जैसे दूसरे लोगों को भी ऐसा ही व्यवहार न सहना पड़े."

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