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कलमा पढ़ पाया हिन्दू इसलिए रहा जिंदा, असम के प्रोफेसर ने बताया कैसे बची जान

Updated on: 23 April, 2025 09:03 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उनसे भी कलमा पढ़ने को कहा गया, ताकि उनके धर्म की पुष्टि हो सके.

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद की तस्वीर

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद की तस्वीर

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की मौत हो गई, जबकि 17 घायल हो गए. आतंकियों ने पहलगाम घूमने आए पर्यटकों से पहले उनका धर्म पूछा और फिर फायरिंग कर दी. कई प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि उनसे भी कलमा पढ़ने को कहा गया, ताकि उनके धर्म की पुष्टि हो सके. कलमा पढ़ने वालों को आतंकियों ने छोड़ दिया. इसी तरह असम के एक हिंदू प्रोफेसर को भी आतंकियों ने गोली नहीं मारी, क्योंकि वह कलमा पढ़ सकते थे. 

इसकी वजह से असम यूनिवर्सिटी में बंगाली विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर देबाशीष भट्टाचार्य की जान बच गई. जिस समय आतंकी हमला हुआ, उस समय देबाशीष भट्टाचार्य भी अपने परिवार के साथ पहलगाम की बेसरन घाटी में मौजूद थे. उन्होंने कहा, "मैं अपने परिवार के साथ एक पेड़ के नीचे आराम कर रहा था. तभी मैंने सुना कि मेरे आस-पास के लोग कलमा पढ़ रहे हैं. यह सुनकर मैंने भी कलमा पढ़ना शुरू कर दिया. थोड़ी ही देर में आतंकवादी मेरी ओर बढ़ा और मेरे बगल में आराम कर रहे व्यक्ति के सिर में गोली मार दी." 


उन्होंने आगे कहा, "इसके बाद आतंकवादी ने मेरी तरफ देखा और पूछा कि तुम क्या कर रहे हो. मैंने जोर-जोर से कलमा पढ़ना शुरू कर दिया. इसके बाद किसी कारण से वह पीछे मुड़ा और वहां से चला गया." इसके बाद जैसे ही प्रोफेसर को मौका मिला, वह चुपचाप अपनी पत्नी और बेटे के साथ वहां से निकल गए. करीब दो घंटे तक पैदल चलने और घोड़ों के पदचिह्नों का अनुसरण करने के बाद आखिरकार वह वहां से निकलकर होटल पहुंचने में कामयाब रहे. 


भट्टाचार्य ने कहा कि उन्हें अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि वह जिंदा हैं. इस बीच, पुणे के एक कारोबारी की बेटी ने भी ऐसा ही दावा किया है कि उसका धर्म पूछने के बाद उसे निशाना बनाया गया. लड़की ने दावा किया है कि आतंकवादियों ने पुरुष पर्यटकों से उनका धर्म पूछने के बाद उन्हें निशाना बनाया. अधिकारियों ने बताया कि महाराष्ट्र के पुणे के दो व्यवसायी संतोष जगदाले और कौस्तुभ गणबोटे की मंगलवार को हुए हमले में गोली मारकर हत्या कर दी गई. 
पुणे में मानव संसाधन पेशेवर 26 वर्षीय आशावरी ने बताया कि उनके पिता और चाचा को बेताब घाटी में उनके "मिनी स्विट्जरलैंड" में आतंकवादियों ने गोली मार दी.


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