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`अगर मोदी-शाह गुजरात में हिंदी नहीं थोप रहे, तो महाराष्ट्र में क्यों?` भड़के राज ठाकरे

Updated on: 18 June, 2025 01:24 PM IST | Mumbai

मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने के फैसले पर कड़ा विरोध जताया. उन्होंने सवाल किया कि अगर प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह गुजरात में हिंदी को अनिवार्य नहीं बना रहे हैं, तो महाराष्ट्र पर इसे क्यों थोपा जा रहा है.

X/Pics, Raj Thackeray

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मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाने के कदम पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. ठाकरे ने इस कदम को पूरी तरह से अस्वीकार करते हुए सवाल उठाया कि क्या इस तरह के नियम अन्य राज्यों में जैसे केरल, तमिलनाडु, गुजरात, यूपी, एमपी और बिहार में भी लागू किए जाएंगे?

उन्होंने कहा कि इस निर्णय से महाराष्ट्र की मराठी भाषा और सांस्कृतिक पहचान को खतरा हो सकता है. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य किया गया, तो यह महाराष्ट्र के लोगों की पहचान और विरासत को समाप्त करने जैसा होगा. ठाकरे ने मुख्यमंत्री से बात करने का दावा करते हुए कहा कि उन्हें इस निर्णय पर पुनर्विचार करने का आश्वासन मिला है. हालांकि, उन्होंने इसे वापस लेने के लिए मुख्यमंत्री को तीसरा पत्र भेजने की योजना बनाई है.


 



 

ठाकरे ने जोर देकर कहा कि बच्चों पर हिंदी थोपने का यह कदम गलत है और इसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने यह भी पूछा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य गुजरात में तो ऐसा कोई नियम लागू नहीं किया जा रहा, तो महाराष्ट्र में इसे क्यों थोपने की कोशिश की जा रही है?

राज ठाकरे ने इसे एक राजनीतिक खेल करार देते हुए कहा कि इस तरह के फैसले राज्य की भाषाई पहचान को कमजोर करते हैं. उन्होंने कहा, "अगर गुजरात में मोदी और शाह इसे लागू नहीं कर रहे, तो महाराष्ट्र पर इसे क्यों थोपा जा रहा है?" ठाकरे ने इस फैसले के पीछे किसी छिपे हुए उद्देश्य का सवाल उठाया और इस निर्णय को राजनीतिक हस्तक्षेप करार दिया.

इस फैसले के तहत, महाराष्ट्र के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पेश किया जाएगा, जो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत निर्धारित किया गया है. हालांकि, ठाकरे का कहना है कि महाराष्ट्र ने कभी भी हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की मांग नहीं की.

उन्होंने छात्रों, शिक्षकों और अभिभावकों से अपील की कि वे इस नीति के खिलाफ आवाज उठाएं और यह सवाल करें कि क्यों उन्हें इसे स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है. ठाकरे ने इसे महाराष्ट्र की सांस्कृतिक और भाषाई पहचान पर हमला बताया और चेतावनी दी कि इस तरह के जबरन फैसलों को राज्य बर्दाश्त नहीं करेगा.

राज ठाकरे ने कहा, "हम चुप नहीं रहेंगे, हम इसका विरोध करेंगे और इस नीति के खिलाफ लड़ेंगे."

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