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महाराष्ट्र सरकार मुंबई ट्रेन ब्लास्ट के फैसले के खिलाफ पहुंची सुप्रीम कोर्ट

Updated on: 22 July, 2025 07:05 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को अपील को गुरुवार के लिए सूचीबद्ध किया.

सुप्रीम कोर्ट. फ़ाइल चित्र.

सुप्रीम कोर्ट. फ़ाइल चित्र.

सुप्रीम कोर्ट 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी करने वाले बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर सुनवाई करेगा. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार यह सुनवाई गुरुवार को होनी है. मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने मंगलवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा हाईकोर्ट के सोमवार के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील को गुरुवार के लिए सूचीबद्ध करने के तत्काल अनुरोध पर गौर किया.

रिपोर्ट के मुताबिक कानून अधिकारी ने कहा, "यह एक गंभीर मामला है. विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) तैयार है. कृपया इसे कल सूचीबद्ध करें. इसमें अत्यावश्यकता है... फिर भी कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों पर विचार किया जाना बाकी है." मुख्य न्यायाधीश ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद आठ लोगों को जेल से रिहा किए जाने की अखबारों में छपी खबरों का हवाला दिया. सोमवार को, न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की एक विशेष उच्च न्यायालय की पीठ ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष "मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा" और "यह विश्वास करना मुश्किल है कि आरोपियों ने अपराध किया है." इन 12 लोगों में से पाँच को पहले 2015 में एक विशेष अदालत द्वारा मौत की सज़ा और सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई जा चुकी थी. मौत की सज़ा पाए एक दोषी की 2021 में मृत्यु हो गई.


11 जुलाई, 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर सात विस्फोट हुए थे, जिनमें 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. रिपोर्ट के अनुसार मुकदमे के दौरान, उच्च न्यायालय ने आरोपियों द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया, जिसमें 2015 में विशेष अदालत द्वारा उनकी दोषसिद्धि और दी गई सज़ा को चुनौती दी गई थी.


उच्च न्यायालय का यह फैसला एटीएसके लिए एक बड़ी शर्मिंदगी का सबब रहा है, जिसने इस मामले की जाँच की थी. एजेंसी ने दावा किया था कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य थे और उन्होंने आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के पाकिस्तानी सदस्यों के साथ मिलकर साजिश रची थी. रिपोर्ट के मुताबिक अभियोजन पक्ष के मामले में एक कठोर अभियोग में, उच्च न्यायालय ने आरोपियों के सभी इकबालिया बयानों को अस्वीकार्य घोषित कर दिया और उन पर "नकल" करने का आरोप लगाया. इन इकबालिया बयानों की विश्वसनीयता को और कम करते हुए, अदालत ने कहा कि आरोपियों ने यह साबित कर दिया है कि इन इकबालिया बयानों को जबरन वसूलने के लिए उन्हें यातनाएँ दी गईं.


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