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2006 मुंबई ब्लास्ट केस में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक

Updated on: 24 July, 2025 03:57 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

अदालत ने कहा कि 12 आरोपियों को वापस जेल भेजने का कोई सवाल ही नहीं है और के फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा.

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. फ़ाइल चित्र

भारत का सर्वोच्च न्यायालय. फ़ाइल चित्र

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट मामले में सभी 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा कि 12 आरोपियों को वापस जेल भेजने का कोई सवाल ही नहीं है और इस बात पर ज़ोर दिया कि हाईकोर्ट के फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा.

रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मामले के सभी आरोपियों को नोटिस जारी किया और राज्य सरकार द्वारा दायर अपील पर उनसे जवाब मांगा. पीठ ने कहा, "हमें सूचित किया गया है कि सभी प्रतिवादियों को रिहा कर दिया गया है और उन्हें वापस जेल भेजने का कोई सवाल ही नहीं है. हालाँकि, कानून के प्रश्न पर सॉलिसिटर जनरल द्वारा की गई दलीलों को ध्यान में रखते हुए, हम यह मानने के लिए इच्छुक हैं कि विवादित फैसले को मिसाल नहीं माना जाएगा. इस हद तक, विवादित फैसले पर रोक रहेगी". महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए.


महाराष्ट्र सरकार ने 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में सभी 12 दोषियों को बरी करने वाले बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है. सरकार का कहना है कि एक अभियुक्त से आरडीएक्स की बरामदगी को "अति-तकनीकी आधार" पर अविश्वासित किया गया था क्योंकि ज़ब्त किए गए विस्फोटकों को लाख की सील से सील नहीं किया गया था. राज्य सरकार ने अपनी अपील में उच्च न्यायालय के बरी करने के आदेश पर कई गंभीर आपत्तियाँ उठाई हैं. रिपोर्ट के अनुसार याचिका में दावा किया गया है कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) की धारा 23(2) के तहत उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन किया गया था, जिसमें अभियोजन पक्ष की गवाह (पीडब्लू) संख्या 185 अनामी रॉय जैसे वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा उचित मंज़ूरी लेना भी शामिल है.


याचिका में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में कोई ठोस विरोधाभास न होने के बावजूद उच्च न्यायालय ने इन मंज़ूरियों की वैधता को नज़रअंदाज़ कर दिया. सोमवार को, न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष उच्च न्यायालय की पीठ ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया और कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और "यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया है". रिपोर्ट के मुताबिक विशेष अदालत ने 12 में से पाँच को मृत्युदंड और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. मृत्युदंड की सजा पाए एक दोषी की 2021 में मृत्यु हो गई. 11 जुलाई, 2006 को पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर मुंबई लोकल ट्रेनों में हुए सात विस्फोटों में 180 से अधिक लोग मारे गए थे. उच्च न्यायालय ने 2015 में एक विशेष अदालत द्वारा अपनी दोषसिद्धि और उन पर लगाई गई सजा को चुनौती देने वाले आरोपियों द्वारा दायर अपीलों को स्वीकार कर लिया.

उच्च न्यायालय का यह फैसला मामले की जाँच कर रही महाराष्ट्र एटीएस के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी लेकर आया. एजेंसी ने दावा किया कि आरोपी प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य थे और उन्होंने आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के पाकिस्तानी सदस्यों के साथ मिलकर साजिश रची थी.


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