Updated on: 01 August, 2024 04:53 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से माना कि राज्यों द्वारा एससी और एसटी के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है.
फ़ाइल फ़ोटो
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत के फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है, ताकि अधिक वंचित जातियों के उत्थान के लिए आरक्षित श्रेणी के अंदर कोटा दिया जा सके. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 6:1 बहुमत से माना कि राज्यों द्वारा एससी और एसटी के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के अंदर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा दिया जा सके.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
रिपोर्ट के मुताबिक पीठ ने छह अलग-अलग फैसले सुनाए. बहुमत के फैसले में कहा गया कि उप-वर्गीकरण का आधार "राज्यों द्वारा मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य डेटा द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए, जो अपनी मर्जी से काम नहीं कर सकते". पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र मिश्रा भी शामिल थे, 23 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब सरकार द्वारा पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले को चुनौती देने वाली मुख्य याचिका भी शामिल थी.
सीजेआई ने अपने और जस्टिस मिश्रा के लिए लिखा. चार जजों ने सहमति जताते हुए फैसले लिखे, जबकि जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताई. रिपोर्ट के अनुसार ईवी चिन्नैया मामले में पांच जजों की बेंच के 2004 के फैसले को खारिज करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा कि एससी और एसटी के सदस्य अक्सर उनके द्वारा सामना किए जाने वाले प्रणालीगत भेदभाव के कारण सीढ़ी चढ़ने में असमर्थ होते हैं.
जस्टिस गवई ने एक अलग फैसले में कहा कि राज्यों को एससी और एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए और उन्हें आरक्षण से बाहर करना चाहिए. रिपोर्ट के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने कहा, राज्यों को आरक्षित श्रेणी के अंदर कोटा के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है. असहमति जताते हुए फैसला लिखते हुए, जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि राज्य संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित एससी सूची में छेड़छाड़ नहीं कर सकते. जस्टिस त्रिवेदी ने कहा कि राज्यों की सकारात्मक कार्रवाई संवैधानिक दायरे में होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि आरक्षण प्रदान करने के लिए राज्य की कार्रवाई, भले ही अच्छी मंशा से की गई हो, को अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का उपयोग करके सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता. अदालत ने 8 फरवरी को ई.वी. चिन्नैया के फैसले की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसमें 2004 में फैसला सुनाया गया था कि सभी अनुसूचित जाति समुदाय जो सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेल रहे हैं, एक समरूप वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिन्हें उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता. यह फैसला ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के मामले में 2004 के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने के संदर्भ में आया, जिसमें यह माना गया था कि एससी और एसटी समरूप समूह हैं और इसलिए, राज्य इन समूहों में अधिक वंचित और कमजोर जातियों के लिए कोटा के अंदर कोटा देने के लिए उन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं कर सकते हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT