Updated on: 18 July, 2025 07:46 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
इनमें से 30 दुकानों के लाइसेंस आजीवन रद्द कर दिए गए हैं. जाँच में पता चला है कि कई दुकानदारों ने जिन दवाओं के बिल दिखाए थे, वे वास्तव में खरीदी ही नहीं थीं.
प्रतीकात्मक चित्र (सौजन्य: मिड-डे)
राजस्थान में सरकारी स्वास्थ्य योजना आरजीएचएस (राजस्थान सरकारी आरोग्य योजना) के तहत एक बड़ा दवा घोटाला सामने आया है. औषधि नियंत्रण विभाग ने दवाओं की बिक्री में भारी अनियमितता के आरोप में राज्य भर की 63 दवा दुकानों पर बड़ी कार्रवाई की है. इनमें से 30 दुकानों के लाइसेंस आजीवन रद्द कर दिए गए हैं, जबकि 33 दुकानों के लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित कर दिए गए हैं. जाँच में पता चला है कि कई दुकानदारों ने जिन दवाओं के बिल दिखाए थे, वे वास्तव में खरीदी ही नहीं थीं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
औषधि नियंत्रक अजय पाठक ने मामले की पुष्टि करते हुए बताया कि आरजीएचएस योजना के तहत राज्य भर में फर्जी बिलिंग और दवा घोटाले की शिकायतें लगातार मिल रही हैं. उन्होंने बताया कि कई दुकानदारों ने लाखों रुपये के बिल दिखाए थे, लेकिन वास्तविक खरीद रिकॉर्ड से पता चला कि उनकी खरीदारी बहुत कम थी.
जाँच में यह भी पता चला है कि कुछ दुकानों ने फर्जी फार्मासिस्टों के हस्ताक्षर वाले बिल दिखाए थे. पाठक ने कहा, "इन मेडिकल स्टोरों पर दिखाई और बताई गई ज़्यादातर दवाइयाँ स्टॉकिस्ट या कंपनियों से नहीं खरीदी गई थीं. इससे साफ है कि यह एक सुनियोजित घोटाला है." औषधि विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, अनियमितताएँ 12 जिलों में फैली हुई थीं. भरतपुर जिले में सबसे ज़्यादा मामले सामने आए, जहाँ 17 दवा दुकानों के खिलाफ कार्रवाई की गई. वहीं, राजधानी जयपुर में 13, बारां में 3 और नागौर, झुंझुनू, सीकर, हनुमानगढ़, धौलपुर, दौसा, भीलवाड़ा, अलवर और झालावाड़ में 2 से 5 दुकानों में अनियमितताएँ पाई गईं.
शिकायतें मिलने के बाद, औषधि नियंत्रक कार्यालय ने राज्य भर के औषधि नियंत्रण अधिकारियों (डीसीओ) को जाँच का जिम्मा सौंपा. इन अधिकारियों ने संबंधित दुकानों की बिल बुक, स्टॉक रजिस्टर, स्टॉकिस्टों से खरीद रिकॉर्ड, फार्मासिस्टों के दस्तावेज़ और आरजीएचएस दावों का मिलान किया. पता चला कि कई दुकानों ने लाखों के दावे किए थे, लेकिन खरीद रिकॉर्ड गायब थे.
कुछ दुकानों के बिलों पर जिन फार्मासिस्टों के हस्ताक्षर थे, वे या तो फर्जी थे या उनका कोई पंजीकरण ही नहीं था. इससे यह स्पष्ट हो गया कि बिल केवल कागज़ों पर बनाए गए थे और दवाएँ वास्तव में मरीजों को नहीं दी गईं. जिन दुकानों के लाइसेंस औषधि विभाग ने रद्द कर दिए हैं, वे भविष्य में कोई दवा का कारोबार नहीं कर पाएँगी. वहीं, जिनके लाइसेंस अस्थायी रूप से निलंबित किए गए हैं, उन्हें विभागीय सुनवाई में अपना स्पष्टीकरण देना होगा. राज्य सरकार पूरे मामले की रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग और आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) को भी भेज सकती है ताकि आपराधिक दृष्टिकोण से आगे की जाँच की जा सके.राजस्थान में सरकारी योजनाओं के नाम पर हो रही धोखाधड़ी का यह एक और बड़ा उदाहरण है. दवा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी दुकानदारों द्वारा मुनाफे के लिए नियमों को तोड़ना न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि मरीजों की जान से भी खिलवाड़ है. अब देखना यह है कि इस कार्रवाई के बाद सरकार और विभाग इस मामले में कितनी सख्ती बरतते हैं.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT