Updated on: 31 July, 2025 10:43 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
अमित शाह के "हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता" बयान पर संजय राउत ने पलटवार किया और कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म या जाति नहीं होती.
संजय राउत ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे कि कुलभूषण भारत का नागरिक है और उसे जल्द से जल्द रिहा किया जाना चाहिए.
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्यसभा में दिए गए बयान कि "एक हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता", पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तेज हो गई हैं. इस बयान पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के वरिष्ठ सांसद संजय राउत ने बुधवार को कड़ी प्रतिक्रिया दी.
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ANI को दिए इंटरव्यू में संजय राउत ने कहा, "एक आतंकवादी की कोई जाति, धर्म या पंथ नहीं होता. आतंकवाद एक मानसिकता है, जिसे किसी एक धर्म से जोड़कर नहीं देखा जा सकता. अमित शाह जैसे वरिष्ठ नेता को इस तरह का बयान देने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे समाज में अनावश्यक ध्रुवीकरण होता है."
#WATCH मुंबई: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा कल राज्यसभा में दिए गए "एक हिंदू आतंकवादी नहीं हो सकता" बयान पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने कहा, "एक आतंकवादी की कोई जाति या धर्म नहीं होता। पाकिस्तान के लोग कुलभूषण यादव को आतंकवादी, हिंदू आतंकवादी कहते हैं। हम इसे स्वीकार करने को… pic.twitter.com/VRsM7DbvJ9
— ANI_HindiNews (@AHindinews) July 31, 2025
उन्होंने आगे कहा, "पाकिस्तान के लोग हमारे नागरिक कुलभूषण जाधव को `हिंदू आतंकवादी` कहते हैं. क्या हम इसे स्वीकार करते हैं? बिल्कुल नहीं. कुलभूषण एक भारतीय नागरिक है, और हम सभी ने मिलकर उसकी रिहाई की मांग की है. उसी तर्क के आधार पर, किसी भी आतंकवादी को धर्म के चश्मे से नहीं देखा जा सकता."
संजय राउत ने केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश दे कि कुलभूषण भारत का नागरिक है और उसे जल्द से जल्द रिहा किया जाना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को देश के भीतर सांप्रदायिक आधार पर राजनीति नहीं करनी चाहिए, खासकर तब जब देश में पहले ही तनावपूर्ण माहौल बना हुआ है.
गौरतलब है कि अमित शाह ने राज्यसभा में UPA सरकार पर निशाना साधते हुए यह टिप्पणी की थी कि "सिर्फ एक राजनीतिक लाभ के लिए `हिंदू आतंकवाद` शब्द गढ़ा गया, जबकि हिंदू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता."
इस बयान को लेकर विपक्षी दलों में तीखी बहस छिड़ गई है. कांग्रेस, एनसीपी, और शिवसेना जैसे दलों ने इसे चुनावी ध्रुवीकरण की रणनीति बताया है. वहीं, भाजपा इसे "इतिहास की सच्चाई को उजागर करने" का प्रयास बता रही है.
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