Updated on: 01 May, 2025 08:20 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह ने याचिकाकर्ता फतेह साहू को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी याचिकाओं से सुरक्षा बलों का मनोबल गिर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की जांच की मांग वाली याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी. इस हमले में 26 लोगों की जान चली गई. यह आवेदन सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा दायर किया गया था. न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह ने याचिकाकर्ता फतेह साहू को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसी याचिकाओं से सुरक्षा बलों का मनोबल गिर सकता है. पीठ ने कहा, "यह बहुत नाजुक समय है जब देश का हर नागरिक आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट है. कृपया ऐसा कुछ न कहें जिससे सुरक्षा बलों का मनोबल कमजोर हो. मुद्दे की संवेदनशीलता को समझें."
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याचिकाकर्ता साहू, जो पेशे से वकील हैं, स्वयं अदालत में उपस्थित हुए और कहा कि उनका उद्देश्य सुरक्षा बलों को हतोत्साहित करना नहीं था तथा वे अपनी याचिका वापस लेने के लिए तैयार हैं. पीठ ने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा, "आपको ऐसी याचिका दायर करने से पहले जिम्मेदारी से सोचना चाहिए. आपको देश के प्रति जिम्मेदार होना चाहिए. आप इस तरह से हमारी सेना का मनोबल कैसे गिरा सकते हैं." कोर्ट ने यह भी कहा कि फतेह साहू के अलावा अहमद तारिक बट ने भी याचिका दायर की थी लेकिन उस पर कोई पक्ष उपस्थित नहीं हुआ, इसलिए उस याचिका पर सुनवाई नहीं हुई.
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों का काम विवादों को सुलझाना है, जांच करना नहीं. पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, "कृपया एक जिम्मेदार वकील बनें. आप इस तरह से सुरक्षा बलों का मनोबल गिरा रहे हैं. सेवानिवृत्त न्यायाधीश कब से जांच विशेषज्ञ बन गए हैं? हम केवल विवादों का निपटारा करते हैं."
साहू ने तर्क दिया कि वह जम्मू-कश्मीर में पढ़ रहे छात्रों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं, क्योंकि देश के अन्य हिस्सों से आए पर्यटकों की भी इस हमले में जान चली गई है. इस संबंध में कोर्ट ने याचिका की दलीलें पढ़ते हुए कहा कि इसमें छात्रों की सुरक्षा का कोई जिक्र नहीं है. याचिका में केवल सुरक्षा बलों और भारतीय प्रेस परिषद के लिए दिशानिर्देश की मांग की गई थी. वकील ने कहा, "जम्मू-कश्मीर से बाहर पढ़ने वाले छात्रों के लिए कुछ सुरक्षा व्यवस्था होनी चाहिए." लेकिन पीठ इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुई और कहा, "क्या आप जानते हैं कि आप क्या मांग रहे हैं. पहले आप सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से जांच की मांग करते हैं, फिर दिशानिर्देश, फिर मुआवजा, फिर प्रेस परिषद को निर्देश." अंततः याचिकाकर्ता ने याचिका वापस लेने का निर्णय लिया, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता चाहें तो वे कश्मीरी छात्रों से संबंधित मुद्दों के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसी याचिकाएं हाईकोर्ट में भी नहीं जानी चाहिए. अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने साहू को याचिका वापस लेने की अनुमति दे दी तथा उन्हें केवल छात्र सुरक्षा के मुद्दे पर ही संबंधित उच्च न्यायालय में जाने की अनुमति दे दी. उल्लेखनीय है कि संवेदनशील पहाड़ी राज्यों में सुरक्षा उपायों के संबंध में एक अन्य जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
इस हमले को हाल के वर्षों में जम्मू-कश्मीर में हुआ सबसे घातक हमला बताया गया है. इस हमले की सर्वोच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन और विभिन्न उच्च न्यायालय बार एसोसिएशनों ने निंदा की. घटना के एक दिन बाद, सुप्रीम कोर्ट में पूर्ण न्यायालय (सभी न्यायाधीशों की बैठक) ने आतंकवादी हमले की निंदा करते हुए दो मिनट का मौन रखा.
पूर्ण न्यायालय ने कहा, "यह अमानवीय और भयावह कृत्य पूरे राष्ट्र की अंतरात्मा को झकझोर देता है और यह आतंकवाद द्वारा की गई क्रूरता और बर्बरता का स्पष्ट उदाहरण है." पर्यटकों पर "कायरतापूर्ण हमले" की कड़ी निंदा करते हुए पूर्ण न्यायालय ने कहा, "कश्मीर की सुंदरता का आनंद ले रहे निर्दोष पर्यटकों पर हमला मानवता की पवित्रता पर सीधा हमला है." अदालत ने अपनी संवेदना व्यक्त की और मृतकों के परिवारों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा, "इस कठिन समय में पूरा देश पीड़ितों और उनके परिवारों के साथ खड़ा है."
यह मामला जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले के पहलगाम की बैसरन घाटी में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले से जुड़ा है. इस हमले में 26 लोग मारे गए और 15 घायल हो गए. यह क्षेत्र एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जिसे "मिनी स्विट्जरलैंड" के नाम से भी जाना जाता है, और यहां केवल पैदल या घोड़े से ही पहुंचा जा सकता है. पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह लश्कर-ए-तैयबा के एक छद्म समूह द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है.
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