होम > न्यूज़ > नेशनल न्यूज़ > आर्टिकल > सुप्रिया सुले ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की योजना पर उठाए सवाल

सुप्रिया सुले ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की योजना पर उठाए सवाल

Updated on: 19 June, 2025 10:29 AM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले ने महाराष्ट्र सरकार से राज्यभर के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की नीति पर स्पष्टता प्रदान करने का आग्रह किया है.

X/Pics, Supriya Sule

X/Pics, Supriya Sule

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) की सांसद सुप्रिया सुले ने महाराष्ट्र सरकार से राज्यभर के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के मुद्दे पर स्पष्टीकरण देने का आग्रह किया है.  उनका कहना है कि इस नीति के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है, और सरकार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करके यह स्पष्ट करना चाहिए कि अंततः सरकार का उद्देश्य क्या है.

सुले ने कहा, "इस पर कोई स्पष्टता नहीं है...मैं अनुरोध करती हूं कि महाराष्ट्र सरकार एक उचित प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करे और स्पष्ट रूप से यह बताए कि नीति वास्तव में क्या है. " उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इस मामले में सरकार को जल्दी से जल्दी स्पष्टीकरण देना चाहिए, ताकि सभी शैक्षिक संस्थान और छात्र इस नीति के बारे में सही जानकारी प्राप्त कर सकें.


 



 

हाल ही में, महाराष्ट्र सरकार ने अपने सरकारी संकल्प (जीआर) में यह घोषणा की थी कि हिंदी को स्कूलों में डिफ़ॉल्ट तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किया जाएगा.  इसके अलावा, सरकार ने यह भी कहा कि जो छात्र दूसरी भाषा सीखना चाहते हैं, उन्हें कम से कम 20 इच्छुक छात्रों के समूह के रूप में इसे अपनाने का अवसर मिलेगा.  यह नीति महाराष्ट्र के शैक्षिक ढांचे में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाती है, क्योंकि यह छात्रों को बहुभाषी शिक्षा की दिशा में और एक कदम आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है.

महाराष्ट्र के शिक्षा मंत्री दादाजी भुसे ने इस पर अपना बयान देते हुए कहा, "मैं स्पष्ट कर दूं कि सभी माध्यम के स्कूलों में, मराठी, जो हमारी राज्य भाषा है, को मुंबई, महाराष्ट्र और भारत में सरकार द्वारा पढ़ाया जाना अनिवार्य है.  कई स्कूलों में कई वर्षों से तीसरी भाषा पढ़ाई जाती रही है. " उन्होंने यह भी कहा कि राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया है कि छात्र और उनके अभिभावक की मांग के आधार पर कोई भी तीसरी भाषा पढ़ाई जाएगी.

यह बयान शिक्षा मंत्री ने इस मुद्दे को लेकर उठ रहे विरोध के बीच दिया.  कुछ शिक्षाविद और नागरिक समाज के सदस्य हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य किए जाने को लेकर विरोध कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे भाषा विविधता को बढ़ावा देने के एक कदम के रूप में देख रहे हैं.

अब तक, महाराष्ट्र में कई स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी, संस्कृत और अन्य भाषाएं पढ़ाई जा रही हैं.  लेकिन इस नीति को लेकर confusion और विरोध के बाद, राज्य सरकार को इस मुद्दे पर और अधिक स्पष्टता देने की आवश्यकता है.

सुप्रिया सुले के बयान से यह स्पष्ट होता है कि इस मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा और एक आधिकारिक स्पष्टीकरण की आवश्यकता है.  जब तक इस नीति को लेकर पूरी स्पष्टता नहीं दी जाती, तब तक महाराष्ट्र के स्कूलों में छात्रों के लिए इसे लागू करना मुश्किल हो सकता है.

अन्य आर्टिकल

फोटो गेलरी

रिलेटेड वीडियो

This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK