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‘नगर आयुक्त को हमारी थाली में झांकने का हक नहीं’- मांस बिक्री बंदी पर गरजे आदित्य ठाकरे

Updated on: 14 August, 2025 12:19 PM IST | Mumbai
Ujwala Dharpawar | ujwala.dharpawar@mid-day.com

महाराष्ट्र में स्वतंत्रता दिवस पर मांस बिक्री और कत्लखाने बंद रखने के आदेश को लेकर राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. कल्याण-डोंबिवली नगर निगम सहित कुछ महापालिकाओं के फैसले पर शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे ने कड़ा विरोध जताते हुए कहा कि स्वतंत्रता दिवस पर क्या खाना है, यह नागरिकों का अधिकार है, न कि प्रशासन का.

Aaditya Thackeray, X/Pics

Aaditya Thackeray, X/Pics

महाराष्ट्र में 15 अगस्त यानी स्वतंत्रता दिवस पर मांस और चिकन की बिक्री, साथ ही कत्लखाने बंद रखने के कुछ महापालिकाओं के आदेश ने नया विवाद खड़ा कर दिया है. कल्याण-डोंबिवली सहित कई नगर निगमों ने इस दिन मटन, चिकन और मांसाहारी उत्पादों की बिक्री रोकने के निर्देश जारी किए हैं. आदेश में कत्लखाने भी बंद रखने का जिक्र है. प्रशासन का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय पर्व की गरिमा बनाए रखने के लिए उठाया गया है, लेकिन इस पर राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं.

 



 


सबसे सख्त प्रतिक्रिया शिवसेना (यूबीटी) नेता आदित्य ठाकरे की तरफ से आई है. उन्होंने साफ शब्दों में कहा, "स्वतंत्रता दिवस पर क्या खाना है और क्या नहीं, यह तय करने का अधिकार नागरिकों का है, न कि किसी नगर आयुक्त का." उन्होंने कल्याण-डोंबिवली नगर आयुक्त को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि उन्हें लोगों की निजी पसंद में दखल देने का कोई हक नहीं है.

आदित्य ठाकरे ने तंज कसते हुए कहा कि नागरिकों पर शाकाहार थोपने की कोशिश करने के बजाय, नगर निगम को शहर की टूटी-फूटी सड़कों, गड्ढों और खस्ताहाल नागरिक सुविधाओं की मरम्मत पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने जोड़ा, "स्वतंत्रता का मतलब ही यह है कि हम अपनी पसंद से जी सकें. अगर कोई मांसाहार करना चाहता है, तो उसे रोकना आज़ादी की भावना के खिलाफ है."

यह विवाद केवल राजनीतिक बहस तक सीमित नहीं है. कई व्यापारियों और मांस विक्रेताओं ने भी नाराज़गी जताई है, उनका कहना है कि ऐसे आदेश से उनकी रोज़ी-रोटी पर असर पड़ता है, जबकि किसी धार्मिक या सांस्कृतिक आधार पर यह दिन मांस बिक्री बंद करने का औचित्य नहीं बनता.

सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे ने जोर पकड़ा है. कुछ लोग प्रशासन के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, तो कई इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला बता रहे हैं. खासकर युवाओं और शहरी क्षेत्रों में यह सवाल जोर पकड़ रहा है कि आज़ादी के 78 साल बाद भी क्या नागरिकों को अपनी थाली का चुनाव करने का अधिकार नहीं है?

अब देखने वाली बात यह होगी कि महापालिकाएं अपने आदेश पर कायम रहती हैं या विरोध के चलते इसे वापस लेती हैं. फिलहाल, मांस बिक्री बंदी का यह फैसला स्वतंत्रता दिवस से पहले ही सियासी और सामाजिक बहस का गर्म मुद्दा बन चुका है.

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