भारी पुलिस सुरक्षा के बीच हुए इस प्रदर्शन में पुलिस ने कम से कम 25-30 लोगों को हिरासत में ले लिया — इनमें वे भी शामिल थे जो मीडिया से बात कर रहे थे या विरोध की अगली पंक्ति में खड़े थे. (PIC/KIRTI SURVE PARADE)
यह प्रदर्शन महज एक हफ्ते बाद हुआ, जब 6 अगस्त को भीड़ ने दादर कबूतरखाना पर लगी प्लास्टिक शीट को हिंसक तरीके से फाड़ दिया था.
उस घटना पर कोई कार्रवाई न होने से प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और भड़क गया.
उन्होंने इसे ‘बर्बरतापूर्ण कृत्य’ बताते हुए कहा कि बीएमसी और पुलिस, अदालत के आदेशों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई करने से बच रही हैं.
प्रदर्शनकारियों की मांगें साफ थीं — नगर निगम को किसी समुदाय की भावनाओं की बजाय जन स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिए, मुंबई के सभी कबूतरखाने बंद होने चाहिए,
और कबूतरों को दाना-पानी देने की जगह शहर से बाहर स्थानांतरित की जानी चाहिए.
साथ ही, दादर कबूतरखाना के प्लास्टिक कवर फाड़ने वालों पर कार्रवाई न करने वाले अधिकारियों पर अदालत की अवमानना का मुकदमा चलाने की भी मांग की गई.
`चला दादर` के संस्थापक चेतन कांबले ने मिड-डे डॉट कॉम से बात करते हुए तीखा हमला बोला — “आज 25-30 शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को तो पुलिस ने तुरंत उठा लिया,
लेकिन पिछले हफ्ते जब भीड़ ने हिंसक तरीके से कबूतरखाना तोड़ा, तब अधिकारी चुपचाप तमाशा देखते रहे. यह सरासर पाखंड है.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर कबूतरों को दाना खिलाने वालों पर जुर्माना और एफआईआर जारी रहनी चाहिए, क्योंकि यह न केवल स्वच्छता को बिगाड़ता है बल्कि फेफड़ों और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ाता है.
दादर कबूतरखाना का मुद्दा अब केवल ‘दाना डालने’ का नहीं रह गया है, बल्कि यह मुंबई में जन स्वास्थ्य बनाम धार्मिक-भावनात्मक राजनीति का टकराव बन गया है.
एक तरफ अदालत के आदेश और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी है, तो दूसरी तरफ उन फैसलों को अमल में लाने से बचती प्रशासनिक मशीनरी.
बुधवार का यह प्रदर्शन इस जंग के एक और अध्याय की शुरुआत भर है — और संकेत दे रहा है कि कबूतरों से ज्यादा, यहां पंख राजनीतिक स्वार्थों को लगे हुए हैं.
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