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संसद में जस्टिस वर्मा के खिलाफ उठी आवाज, पक्ष-विपक्ष दोनों एक

Updated on: 21 July, 2025 07:43 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

यह नोटिस इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस न्यायाधीश को हटाने से संबंधित था, जिनके आवास से जले हुए नोटों की गड्डियाँ मिली थीं.

न्यायमूर्ति वर्मा. तस्वीर/पीटीआई

न्यायमूर्ति वर्मा. तस्वीर/पीटीआई

संसद में मानसून सत्र के पहले दिन विपक्ष ने न्यायमूर्ति वर्मा पर जमकर निशाना साधा. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा पर दबाव बढ़ाते हुए, सांसदों ने सोमवार को लोकसभा और राज्यसभा के पीठासीन अधिकारियों को नोटिस सौंपे. यह नोटिस इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस न्यायाधीश को हटाने से संबंधित था, जिनके आवास से जले हुए नोटों की गड्डियाँ मिली थीं.

रिपोर्ट के मुताबिक इस विवाद के बाद न्यायमूर्ति वर्मा को दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय वापस भेज दिया गया था, लेकिन संसदीय मानसून सत्र के दौरान सांसदों ने उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की. एक द्विदलीय प्रतिनिधिमंडल ने सोमवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए 145 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षरों वाला एक नोटिस सौंपा. नोटिस पर हस्ताक्षर करने वालों में विपक्ष के नेता राहुल गांधी, भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और अनुराग ठाकुर, राकांपा-सपा नेता सुप्रिया सुले, कांग्रेस नेता के.सी. वेणुगोपाल और के. सुरेश, द्रमुक नेता टी.आर. बालू, आरएसपी सदस्य एन.के. प्रेमचंद्रन और आईयूएमएल सदस्य ई.टी. मोहम्मद बशीर आदि शामिल थे.


दूसरी ओर, राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को भी इसी तरह का एक और नोटिस सौंपा गया. जगदीप धनखड़ को सौंपे गए पत्र पर राज्यसभा के 63 सदस्यों के हस्ताक्षर थे. रिपोर्ट के अनुसार  न्यायमूर्ति वर्मा के नकद विवाद पर कांग्रेस सदस्य सैयद नसीर हुसैन ने कहा, "आप और भारतीय जनता पार्टी के 63 सांसदों सहित विपक्ष के 63 सांसदों ने न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के लिए राज्यसभा के सभापति को नोटिस दिया है". हुसैन ने कहा कि वर्मा को हटाने के प्रस्ताव को पेश करने के लिए सभापति धनखड़ को नोटिस दिया गया है.


उन्होंने कहा कि हालांकि तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सदस्य सोमवार को मौजूद नहीं थे, फिर भी वे इस मुद्दे पर सहमत हैं और बाद में अपने हस्ताक्षर प्रस्तुत करेंगे. रिपोर्ट के मुताबिक किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए, नोटिस को लोकसभा में कम से कम 100 सदस्यों और राज्यसभा में 50 सदस्यों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है. सदन के अध्यक्ष प्रस्ताव को स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकते हैं.

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार, संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव प्रस्तुत किए जाने पर न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों की जाँच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा एक समिति गठित की जाएगी. अधिनियम में प्रावधान है कि जब तक प्रस्ताव को दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित नहीं किया जाता, तब तक कोई समिति गठित नहीं की जाएगी.


यदि प्रस्ताव को संसद के निचले और ऊपरी सदनों द्वारा अनुमोदित कर दिया जाता है, तो न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की जाँच एक समिति द्वारा की जाएगी, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के एक वरिष्ठ न्यायाधीश, उच्च न्यायालय के एक वर्तमान मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे. समिति को तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी. जाँच रिपोर्ट संसद में पेश की जाएगी, जिसके बाद दोनों सदनों में इस पर चर्चा होगी और उसके बाद न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने के प्रस्ताव पर मतदान होगा. यद्यपि न्यायमूर्ति वर्मा ने किसी भी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया है, जाँच पैनल इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि न्यायाधीश और उनके परिवार के सदस्यों का उस गोदाम पर गुप्त या सक्रिय नियंत्रण था जहाँ नकदी मिली थी.

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