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ईरान को न्यूक्लियर सपोर्ट करने के वादे से मुकरा पाकिस्तान

Updated on: 17 June, 2025 08:43 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

ख्वाजा आसिफ ने पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली में ईरान के साथ खड़े होने का वादा किया था और ईरान पर हमले के बाद इजरायल के खिलाफ मुस्लिम एकता का आह्वान किया था.

फाइल फोटो (सौजन्य: मिड-डे)

फाइल फोटो (सौजन्य: मिड-डे)

जब इजरायल ने ईरान पर हमला किया तो पाकिस्तान ने बहुत अहंकार दिखाया. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने तो जोश में आकर यहां तक कह दिया कि इजराइल ने ईरान, यमन और फिलिस्तीन को निशाना बनाया है. अगर मुस्लिम देश अब एकजुट नहीं हुए तो सबका यही हश्र होगा. ख्वाजा आसिफ ने पाकिस्तान की संसद नेशनल असेंबली में ईरान के साथ खड़े होने का वादा किया था और ईरान पर हमले के बाद इजरायल के खिलाफ मुस्लिम एकता का आह्वान किया था. 

नेशनल असेंबली में बोलते हुए पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि मुस्लिम देशों को अब इजरायल के खिलाफ एकता दिखाने की पहल करनी चाहिए. उन्होंने कहा, "इजराइल ने ईरान, यमन और फिलिस्तीन को निशाना बनाया है. अगर मुस्लिम देश अब एकजुट नहीं हुए तो सबका यही हश्र होगा." उन्होंने इजरायल के साथ राजनयिक संबंध रखने वाले मुस्लिम देशों से तुरंत संबंध तोड़ने का आग्रह किया और कहा कि इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) को एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए मिलना चाहिए. आसिफ ने कहा कि पाकिस्तान के ईरान के साथ घनिष्ठ संबंध हैं और इस्लामाबाद इन कठिन समय में तेहरान के साथ खड़ा है. 


रक्षा मंत्री ने कहा, "हम ईरान के साथ खड़े हैं और उनके हितों की रक्षा के लिए हर अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनका समर्थन करेंगे." ईरान ने पाकिस्तान के इस बयान को बहुत गंभीरता से लिया. आईआरजीसी कमांडर और ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सदस्य जनरल मोहसेन रेजाई ने ईरानी सरकारी टेलीविजन पर कहा, "पाकिस्तान ने हमें बताया है कि अगर इजरायल ईरान पर परमाणु बम का इस्तेमाल करता है, तो पाकिस्तान भी इजरायल पर परमाणु बम से हमला करेगा." 


यह बड़ी बात है कि ईरान ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि पाकिस्तान ने विशेष परिस्थितियों में परमाणु बम का इस्तेमाल करने की गारंटी दी है. यह पाकिस्तान के परमाणु सिद्धांत में एक महत्वपूर्ण बदलाव था. जहां पाकिस्तान दूसरे देशों की रक्षा के लिए अपने परमाणु बम का इस्तेमाल करने के लिए तैयार था. जैसे ही यह बयान अंतरराष्ट्रीय मीडिया में आया, इस्लामाबाद इस बयान से पीछे हट गया. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने ईरान के दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया. ख्वाजा आसिफ ने कहा कि इस्लामाबाद ने इजरायल के खिलाफ परमाणु हमले की बात नहीं कही है. पाकिस्तान ने स्पष्ट किया कि उसका ऐसा कोई इरादा नहीं है. 

पाकिस्तान ने निश्चित रूप से ईरान का समर्थन किया है और इजरायल की कार्रवाई की निंदा की है. लेकिन पाकिस्तान परमाणु हमले की बात करने से पीछे हट गया है. अब पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने भी ईरानी जनरल के बयान पर सफाई दी है. इशाक डार ने संसद को बताया, "सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें एक ईरानी जनरल यह कहते हुए दिखाई दे रहा है कि अगर इजरायल ईरान पर परमाणु हथियारों से हमला करता है, तो पाकिस्तान भी इजरायल पर परमाणु हथियारों से हमला करेगा." उन्होंने कहा कि यह गैरजिम्मेदाराना और झूठी खबर है.


विदेश मंत्री ने कहा कि 1998 से पाकिस्तान की परमाणु नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. उन्होंने ईरानी जनरल के बयान को खारिज करते हुए कहा कि हमारी तरफ से ऐसा कोई बयान नहीं दिया गया, यह मनगढ़ंत है. तब भी हमने कहा था कि यह पाकिस्तान की घोषित नीति है. यह आत्मरक्षा के उद्देश्य से है. इशाक डार ने यह भी कहा, "इजरायल पाकिस्तान की तरफ ऊंची नजर से भी नहीं देख सकता."

यूरोपियन लीडरशिप नेटवर्क के डॉ. ऋषि पॉल ने कहा कि परमाणु शक्ति होने के बावजूद पाकिस्तान इसलिए सतर्क है क्योंकि वह ईरान के साथ सीधे सैन्य टकराव या इजरायल-अमेरिका के खिलाफ कार्रवाई से बचना चाहता है. यह खास तौर पर तब महत्वपूर्ण है जब पाकिस्तान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और उसे पश्चिमी देशों से वित्तीय सहायता की जरूरत है.

उल्लेखनीय है कि परमाणु हमलों के बारे में ये बयान पाकिस्तान की ओर से ऐसे समय में आ रहे हैं, जब पाकिस्तान का सबसे बड़ा पावर सेंटर अमेरिका में ट्रंप की मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत हुए असीम मुनीर इस समय एक सप्ताह के दौरे पर अमेरिका में हैं. वे अमेरिकी सीनेटरों से चर्चा कर रहे हैं और पाकिस्तान के पक्ष में वकालत करने वाले थिंक टैंक से मिल रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद अमेरिका पाकिस्तान के प्रति अपनी नीति को नरम कर रहा है. ट्रंप ने बार-बार दावा किया है कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान संघर्ष को `व्यापार` के जरिए सुलझाया है. उन्होंने 10 मई को `ट्रुथ सोशल` पर घोषणा की कि उनकी मध्यस्थता से `पूर्ण और तत्काल युद्ध विराम` हुआ है. हालांकि, भारत ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा है कि युद्ध विराम द्विपक्षीय वार्ता के जरिए हुआ था और व्यापार पर कोई चर्चा नहीं हुई थी. ट्रंप और पाकिस्तान के बीच हाल ही में हुए मेल-मिलाप के कई कारण हैं. इनमें आर्थिक, सैन्य और भू-राजनीतिक कारण शामिल हैं. पाकिस्तान ने ट्रंप को अमेरिका में बड़ी आर्थिक जगह दी है. पाकिस्तान अमेरिकी कंपनियों को बलूचिस्तान में खनिज खनन के ठेके दे रहा है. इसके अलावा पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ एक बड़ी क्रिप्टो डील की है. इस डील में ट्रंप के करीबी लोग शामिल रहे हैं.

अमेरिका की बैक चैनल डिप्लोमेसी और खुफिया एजेंसियां फिर से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों में घुसपैठ करने की कोशिश कर रही हैं. इमरान खान के कार्यकाल में पाकिस्तान में काम कर रहा पूरा अमेरिकी खुफिया नेटवर्क इमरान की कड़वाहट का शिकार हो गया. कभी-कभी असीम मुनीर और शाहबाज शरीफ की पीठ थपथपाकर अमेरिका पाकिस्तान में चीनी हितों के विस्तार को भी रोक रहा है. लेकिन अमेरिका और पाकिस्तान की नजदीकी पश्चिम एशिया से भी जुड़ी हुई है. पाकिस्तान का पड़ोसी ईरान एक ऐसा देश है जिसे अमेरिकी रणनीतिकार `बुराई की धुरी` का हिस्सा मानते हैं. अमेरिका कभी भी ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं होने देना चाहता.

इसके लिए भले ही सैन्य अभियान की कमान इजरायल के हाथ में हो, लेकिन सभी जानते हैं कि इस मिशन का रिमोट कंट्रोल अमेरिका के हाथ में है. ईरान को परमाणु हथियारों से दूर रखने के लिए ट्रंप को पाकिस्तानी जमीन की जरूरत है. जहां से अमेरिका ईरान की हर हरकत पर नजर रख सकता है. गौरतलब है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच 909 किलोमीटर लंबी सीमा है. यह सीमा रेखा ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान को पाकिस्तान के बलूचिस्तान से अलग करती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान का यह भरोसा हासिल करने के लिए ट्रंप प्रशासन और अमेरिकी सेना असीम मुनीर की पीठ थपथपा रही है और कह रही है कि पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ बेहतरीन काम किया है. असीम मुनीर को इसी बेहतरीन काम के इनाम के तौर पर अमेरिका आमंत्रित किया गया है. शीत युद्ध के दौरान अमेरिका ने यूयूएसआर को तोड़ने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया था. अब अमेरिका पाकिस्तान में रहकर ईरान और चीन के खिलाफ भी यही करने जा रहा है.

चीन के खिलाफ रणनीतिक कदम उठाना अभी भी बड़ी बात है, लेकिन अमेरिका के लिए पाकिस्तान में रहकर और इजरायल में शरण लेकर ईरान को नियंत्रित करना ज्यादा आसान है. अमेरिका ने इस दिशा में एक कदम उठाया है. आसिम मुनीर की अमेरिका यात्रा का समय भी उसी समय से मेल खाता है, जब इजरायली जेट ईरान के आसमान में कहर बरपा रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान फर्जी तारीफों की बंपर खुराक पाकर फील्ड मार्शल बने आसिम मुनीर अगर अभी भी पाकिस्तान में होते, तो पाकिस्तान के आर्मी चीफ पर एक इस्लामिक देश (ईरान) की मदद करने का दबाव बनाया जा सकता था. पाकिस्तान हर कीमत पर खुद को इस्लामिक उम्माह का मुखिया बताने की कोशिश करता रहता है. लेकिन आखिरी वक्त में मुनीर की गैरमौजूदगी ने इस सवाल को खत्म कर दिया है. आसिम मुनीर को मनाकर अमेरिका ने लंबे समय से चले आ रहे ईरान मुद्दे को अपने पक्ष में हल करने का फैसला किया है.

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