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Imroz: नहीं रहे अमृता प्रीतम के इमरोज़, 97 वर्ष की आयु में हुआ निधन

Updated on: 22 December, 2023 02:48 PM IST | mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

आज मशहूर शायर और चित्रकार इमरोज़ का 97 साल की उम्र में मुंबई स्थित उनके घर पर निधन हो गया (Imroz No More). वह पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य समस्याओं से गुजर रहे थे. इमरोज़ का मूल नाम इंद्रजीत सिंह था. अमृता प्रीतम के साथ रिश्ते के बाद एमरोज काफी लोकप्रिय हो गए.

प्रतिकात्मक तस्वीर

प्रतिकात्मक तस्वीर

आज मशहूर शायर और चित्रकार इमरोज़ का 97 साल की उम्र में मुंबई स्थित उनके घर पर निधन हो गया (Imroz No More). वह पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य समस्याओं से गुजर रहे थे. इमरोज़ का मूल नाम इंद्रजीत सिंह था. अमृता प्रीतम के साथ रिश्ते के बाद एमरोज काफी लोकप्रिय हो गए.

इमरोज़ का जन्म साल 1926 में लाहौर से 100 किलोमीटर दूर एक गांव में हुआ था. इमरोज़ ने जगजीत सिंह की `बिरहा दा सुल्तान` और बीबी नूरन की `कुली राह विखा` सहित कई प्रसिद्ध एलपी के कवर डिजाइन किए.


इमरोज़ की मौत (इमरोज़ नो मोर) की पुष्टि उनके करीबी दोस्त अमिया कुँवर ने की. उन्होंने कहा, "इमरोज़ कुछ दिनों से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था."


अमृता प्रीतम और इमरोज़ की प्रेम कहानी खूब चर्चा में रही

आपको बता दें कि इमरोज़ और अमृता प्रीतम की शादी नहीं हुई थी लेकिन वे 40 साल तक लिव-इन रिलेशनशिप में थे. जब भी इमरोज़ की चर्चा होती है तो अमृता प्रीतम का नाम भी उसके साथ जुड़ जाता है. इन दोनों की प्रेम कहानी हमेशा चर्चा में रही. साहिर लुधियानवी के अलावा अमृता प्रीतम ने भी अपनी आत्मकथा ``रशीदी टिकट`` में अपने और इमरोज़ के बीच के आध्यात्मिक रिश्ते का वर्णन किया है.


ऐसा भी कहा जाता है कि अमृता की मौत के बाद इमरोज़ ने गुमनामी की जिंदगी जी. 31 अक्टूबर 2005 को अमृता की मृत्यु हो गई. इमरोज़ को अमृता से एक कलाकार ने मिलवाया था. ऐसा भी कहा जाता है कि अमृता अपनी किताब का कवर डिजाइन करने के लिए किसी की तलाश में थीं. अमृता प्रीतम ने पंजाबी और हिंदी में कविताएँ और उपन्यास लिखे.

ऐसा भी कहा जाता है कि अमृता और इमरोज़ की उम्र में सात साल का अंतर था. साल 2005 में अमृता का निधन हो गया. अपनी मृत्यु से पहले, अमृता ने एमरोज़ के लिए एक कविता लिखी थी जिसमें कहा गया था, ``मैं तुम्हें फिर देखूंगी.``

इमरोज़ का जन्म 1926 में लाहौर से 100 किलोमीटर दूर एक गाँव में हुआ था. इमरोज़ ने जगजीत सिंह की `बिरहा दा सुल्तान` और बीबी नूर की `कुली राह विखा` सहित कई प्रसिद्ध एलपी के कवर डिजाइन किए.

`रसीद टिकट` में अमृता प्रीतम ने बताया कि इमरोज़ उनकी जिंदगी में आने वाले तीसरे शख्स थे. अमृता अक्सर इमरोज़ से कहती थीं - ``अजनबी, तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिले.``

इमरोज़ ने भले ही आज इस दुनिया को छोड़ दिया है (इमरोज़ नो मोर) लेकिन वह अमृता के पास दूसरी दुनिया में चले गए होंगे, उनकी प्रेम कहानी ऐसी नहीं है जो उनके निधन (इमरोज़ नो मोर) के साथ समाप्त हो जाए.

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