Updated on: 12 April, 2024 08:40 AM IST | mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
वर्कशॉप में इस बीमारी के लक्षणों और उपचार के विकल्पों की जानकारी दी गई.
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Mumbai News: वर्ल्ड पार्किंसंस डे पर वॉकहार्ट हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल ने पार्किंसंस अवेयरनेस वर्कशॉप आयोजित की. इस वर्कशॉप में इस बीमारी के लक्षणों और उपचार के विकल्पों की जानकारी दी गई. वॉकहार्ट हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल की सीनियर न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. शीतल गोयल ने इस बीमारी पर चर्चा की. आपने इस वर्कशॉप में इस बीमारी से जुड़े अहम पहलुओं पर रोशनी डाली और इस बीमारी में देखभाल और इलाज देने के लिए हॉस्पिटल की तरफ़ से उठाए जाने वाले कदमों के बारे में भी बताया. डॉ. गोयल ने बताया कि पार्किंसंस रोग एक न्यूरोडिजनेरेटिव डिसॉर्डर है जिसमें शरीर की गति (मूवमेंट) या काम करने की क्षमता प्रभावित होती है. आपने प्रेज़न्टेशन से इस बीमारी से जुड़ी जानकारी साझा करते हुए इससे जुड़े खास लक्षणों जैसे कंपकंपी रहना, शरीर का लचीलापन कम होना, ब्रैडीकिनेसिया (शरीर की गतिशीलता कम हो जाना), और पॉश्चर संबंधी अस्थिरता के बारे में बताया.
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इस बीमारी के बारे में जानकारी देते हुए, डॉ. गोयल ने पार्किंसंस रोग को अन्य बीमारियों से अलग करने की चुनौतियों के बारे में भी बताया क्योंकि अन्य बीमारियों में भी इस तरह के लक्षण नजर आ सकते हैं. उन्होंने कहा, “पार्किंसंस रोग के लक्षण कई अन्य न्यूरॉलॉजिकल डिसॉर्डर से मिलते-जुलते होते हैं, खासकर कंपकंपी, मल्टीपल सिस्टम एट्रॉफी और दवाओं के प्रभाव से होने वाले पार्किंसनिज़्म के बीच अंतर कर पाना बेहद कठिन होता है. इनके लक्षणों के मिलने के कारण ही पार्किंसंस बीमारी का किसी बेहतर न्यूरोलॉजिस्ट से सही डायग्नोसिस बनवाना बहुत जरूरी हो जाता है.” डॉ. गोयल ने आगे कहा कि इस बीमारी पर काबू पाने और इसके इलाज के लिए इसके शुरुआती लक्षणों को पहचानना महत्वपूर्ण है. इसके सामान्य शुरुआती लक्षणों में लिखावट में बदलाव आना, गंध को महसूस करने में कमी, नींद में खलल और मूड में बदलाव होना शामिल हैं. इन शुरुआती लक्षणों के बारे में जागरूकता होने पर कोई भी व्यक्ति शीघ्र चिकित्सा सहायता लेने की शुरुआत कर सकता है और तब इससे जल्दी निदान और उचित उपचार शुरू करने में मदद मिलेगी.
डॉ. गोयल का यह भी कहना था कि चिकित्सा ज्ञान में प्रगति के बावजूद, पार्किंसंस रोग की पहचान जल्दी नहीं हो पाती है या इसके बारे में देर से पता चलता है. उन्होंने इसके कारणों में शुरुआती लक्षणों का दूसरी बीमारियों के लक्षणों से मिलता-जुलता होना, रोगियों और स्वास्थ्य देखभाल मुहैया कराने वालों के बीच जागरूकता की कमी और न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर को देखने की समाज की दृष्टि को जिम्मेदार ठहराया. डॉ. गोयल ने कहा कि इस बीमारी के समाधान के लिए न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के बारे में शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे में सुधार करना आवश्यक है. इस बीमारी के इलाज के विकल्पों पर चर्चा करते हुए आपने इस बात पर प्रकाश डाला कि दी जाने वाली दवा के अलावा कई अन्य तरीके भी पार्किंसंस रोग के इलाज में बेहतर भूमिका रखते हैं. आपने कहा, “फिजिकल थैरेपी, ऑक्यूपेशनल थैरेपी, स्पीच थैरेपी और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन इसके उपचार के अन्य तरीके हैं. इन तरीकों से पार्किंसंस रोग वाले व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता में काफी सुधार लाया जा सकता है.”
वॉकहार्ट हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल पार्किंसंस रोग के रोगियों को सम्पूर्ण देखभाल मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है. डॉ. गोयल ने हॉस्पिटल के कई विभागों के साथ मिलकर काम करने के तरीके के बारे में भी बताया. उन्होंने कहा कि हॉस्पिटल, विशेषज्ञ, मरीज को फिर से सामान्य जीवन में लौटा लाने वाली सेवाओं (रिहैबिलेटेशन सर्विसेस) और रोगी सहायता कार्यक्रमों को एक साथ जोड़ता है. आपने कहा “वॉकहार्ट हॉस्पिटल में हम पार्किंसंस रोग के लिए बेहतर इलाज मुहैया कराते हैं, जिसमें एपोमोर्फिन पंप और डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस) का उपयोग शामिल है. हम पार्किंसंस के रोगियों को जल्दी ठीक करने के लिए हम व्यक्तिगत देखभाल और उपचार के हर पक्ष पर पूरा ध्यान देते हैं.” वॉकहार्ट हॉस्पिटल्स, मुंबई सेंट्रल में आयोजित इस अवेयरनेस वर्कशॉप ने पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता और समझ बढ़ाने वाले प्लेटफॉर्म का काम किया. डॉ. गोयल ने इस चुनौतीपूर्ण स्थिति से प्रभावित व्यक्तियों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए शीघ्र पहचान, सटीक डायग्नोस्टिक और हर पहलू पर ध्यान देकर इलाज के महत्व को दोहराया.
डॉ. गोयल ने कहा कि “वर्ल्ड पार्किंसंस डे पर, इस गंभीर बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाना और शीघ्र निदान और हर तरह से देखभाल के महत्व पर जोर देना जरूरी है. वॉकहार्ट हॉस्पिटल्स में हम पार्किंसंस रोग के रोगियों को बेहतर स्वास्थ्य देने के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
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