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मानसिक रूप से अक्षम महिला को नहीं है मां बनने का अधिकार? बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्यों पूछा ऐसा सवाल

Updated on: 08 January, 2025 05:07 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी बेटी गर्भावस्था जारी रखना चाहती थी, लेकिन उसका दिमाग ठीक नहीं है.

प्रतीकात्मक तस्वीर

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बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को एक 27 वर्षीय अविवाहित महिला के पिता द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सवाल उठाया कि क्या बौद्धिक अक्षमता वाली महिला को मां बनने का अधिकार है. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी बेटी गर्भावस्था जारी रखना चाहती थी, लेकिन उसका दिमाग ठीक नहीं है. न्यायमूर्ति आरवी घुगे और राजेश पाटिल की खंडपीठ ने पिछले सप्ताह निर्देश दिया था कि महिला की जांच मुंबई के सरकारी जेजे अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड द्वारा की जाए.

रिपोर्ट के मुताबिक बुधवार को मेडिकल बोर्ड ने बॉम्बे हाईकोर्ट को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया कि महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ या बीमार नहीं है, लेकिन उसे 75 प्रतिशत की बुद्धि लब्धि (आईक्यू) के साथ सीमा रेखा बौद्धिक अक्षमता का निदान किया गया था. पीठ ने कहा कि महिला के माता-पिता ने उसे किसी मनोवैज्ञानिक परामर्श या उपचार से नहीं गुज़ारा, बल्कि 2011 से उसे केवल दवा पर रखा.


मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण में कोई असामान्यता या विसंगति नहीं थी और महिला गर्भावस्था को जारी रखने के लिए चिकित्सकीय रूप से फिट थी, जबकि यह भी कहा गया कि गर्भपात भी संभव था. रिपोर्ट के अनुसार अतिरिक्त सरकारी वकील प्राची टाटके ने अदालत को बताया कि ऐसे मामलों में गर्भवती महिला की सहमति सबसे महत्वपूर्ण है.


पीठ ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि महिला मानसिक रूप से विकलांग या अस्वस्थ नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने कहा, "रिपोर्ट में यह टिप्पणी की गई है कि उसकी बुद्धि औसत से कम है. कोई भी व्यक्ति अति बुद्धिमान नहीं हो सकता. हम सभी इंसान हैं और सभी की बुद्धि अलग-अलग स्तर की होती है." "सिर्फ़ इसलिए कि उसकी बुद्धि औसत से कम है, क्या उसे माँ बनने का कोई अधिकार नहीं है? अगर हम कहें कि औसत से कम बुद्धि वाले लोगों को माता-पिता बनने का अधिकार नहीं है, तो यह कानून के खिलाफ़ होगा."

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, 20 सप्ताह की गर्भ अवधि से अधिक गर्भधारण की अनुमति उन मामलों में दी जाती है, जहां महिला मानसिक रूप से बीमार है. पीठ ने कहा, "सीमा रेखा वाले मामले को मानसिक विकार नहीं कहा जा सकता. उसे [वर्तमान मामले में गर्भवती महिला] मानसिक रूप से बीमार घोषित नहीं किया गया है. यह केवल बौद्धिक कामकाज का सीमा रेखा वाला मामला है."


याचिकाकर्ता के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट को सूचित किया कि महिला ने अब अपने माता-पिता को उस व्यक्ति की पहचान बताई है, जिसके साथ वह रिश्ते में है और जो गर्भावस्था के लिए जिम्मेदार है. इसके बाद कोर्ट ने महिला के माता-पिता से उस व्यक्ति से मिलने और उससे बातचीत करने के लिए कहा, ताकि पता चल सके कि क्या वह उनकी बेटी से शादी करने के लिए तैयार है. कोर्ट ने कहा, "माता-पिता के रूप में, पहल करें और उस व्यक्ति से बात करें. वे दोनों वयस्क हैं. यह कोई अपराध नहीं है."

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