Updated on: 10 September, 2025 07:56 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
अदालत ने कहा कि उसके इस कृत्य को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि बच्चों से प्यार करने वाला स्वाभाविक प्रवृत्ति से ऐसा कर सकता है.
प्रतीकात्मक छवि
महाराष्ट्र के ठाणे की एक विशेष अदालत ने 2021 में तीन साल की बच्ची के गाल पर चुंबन लेकर उसके साथ छेड़छाड़ करने के एक मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया है. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा कि उसके इस कृत्य को आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता क्योंकि बच्चों से प्यार करने वाला कोई भी व्यक्ति स्वाभाविक प्रवृत्ति से ऐसा कर सकता है.
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रिपोर्ट के मुताबिक अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए कहा कि उसकी ओर से स्पष्ट आपराधिक इरादे का अभाव था और अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ आरोप साबित करने में विफल रहा. यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम से संबंधित मामलों की सुनवाई कर रही विशेष न्यायाधीश रूबी यू मालवंकर ने 22 अगस्त को पारित एक आदेश में, 54 वर्षीय ओमप्रकाश रामबचन गिरि को बरी कर दिया, जिन पर 9 जनवरी, 2021 को दो अलग-अलग मौकों पर नाबालिग लड़की को गले लगाने और चूमने का आरोप था.
पुलिस ने उसके खिलाफ पॉक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 354 (महिला की गरिमा भंग करने के इरादे से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) के तहत मामला दर्ज किया था. रिपोर्ट के अनुसार अदालत ने कहा, "जिस कथित कृत्य के लिए आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाया गया है, उसे ऐसे कृत्य की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता जिसे सभी मामलों में अनुचित स्पर्श या बुरा स्पर्श कहा जा सके. संबंधित समय में पीड़िता की उम्र को देखते हुए, कोई भी व्यक्ति जो स्वाभाविक रूप से बच्चों का शौकीन है, उसे गोद में उठा सकता है, उसके गाल पर प्यार से चुंबन दे सकता है, जो आमतौर पर समाज में होता है.हमारे जैसे देश में, इस तरह का व्यवहार - जब तक कि वह बच्चे को चोट न पहुँचा रहा हो या जब तक कि यह किसी अजनबी द्वारा बुरी नीयत से न किया गया हो - वास्तव में आपत्तिजनक या अपमानजनक नहीं माना जाता है. इसलिए, इस मामले में भी, चूँकि आरोपी बिल्कुल अजनबी नहीं था क्योंकि वह उसी इलाके का निवासी था, इसलिए इसे पूरी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता".
अदालत ने पाया कि कथित घटनाओं के दौरान बच्ची दर्द से नहीं रोई. न्यायाधीश ने निष्कर्ष निकाला, "ऐसी सभी परिस्थितियों में पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुँचाने का तत्व लगभग नदारद है और स्नेहपूर्ण व्यवहार को उचित संदेह से परे आपराधिक कृत्य नहीं माना जा सकता. रिपोर्ट के मुताबिक इन निष्कर्षों के आधार पर, अदालत ने आरोपी को संदेह का लाभ दिया, जिसके परिणामस्वरूप उसे बरी कर दिया गया. आईपीसी की धारा 354 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 (यौन कृत्य) के तहत आरोप सिद्ध नहीं हुए, और गिरी को सभी अपराधों से बरी कर दिया गया. अदालत ने यह भी नोट किया कि अभियोजन पक्ष पॉक्सो अधिनियम के तहत पीड़िता को "बच्ची" साबित करने के लिए जन्म प्रमाण पत्र या कोई दस्तावेज़ी साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा. हालाँकि माँ ने गवाही दी कि उसकी बेटी तीन साल की थी, लेकिन उसकी मौखिक गवाही साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं थी.
न्यायाधीश ने गवाहों की गवाही में एक "गायब कड़ी" की ओर इशारा किया. अदालत ने कहा कि माँ ने कथित घटना को स्वयं नहीं देखा था, बल्कि एक 12 वर्षीय लड़की और एक अन्य बच्चे से मिली जानकारी पर भरोसा किया था. अदालत ने कहा कि जाँच अधिकारी उस महत्वपूर्ण गवाह का बयान दर्ज करने में विफल रहा जिसने माँ को दूसरी कथित घटना के बारे में सूचित किया था.
बच्ची के गाल पर खरोंच के निशान के आरोप के बावजूद, जाँच अधिकारी ने पीड़िता का मेडिकल परीक्षण नहीं कराया और अभियोजन पक्ष के गवाह की गवाही को मामले में "मात्र सुधार" बताया. पीड़िता की अपनी गवाही, जो उसने सात साल की उम्र में दर्ज की थी, को अविश्वसनीय माना गया. पीड़िता ने जिरह में स्वीकार किया कि उसके पिता ने उसे अदालत में क्या कहना है, इस बारे में निर्देश दिया था, जिससे अदालत इस निष्कर्ष पर पहुँची कि उसे ट्यूशन दिए जाने की संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता.
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