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ट्रेन विस्फोटों के आरोपियों को बरी करने के आदेश का होगा अध्ययन, मंत्री बावनकुले ने किया ऐलान

Updated on: 21 July, 2025 06:01 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

इन विस्फोटों में 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. 11 जुलाई, 2006 को मुंबई लोकल ट्रेनों में सात विस्फोट हुए थे, जिनमें 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे.

चन्द्रशेखर बावनकुले. फ़ाइल चित्र

चन्द्रशेखर बावनकुले. फ़ाइल चित्र

महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता चंद्रशेखर बावनकुले ने कहा कि राज्य सरकार 2006 के मुंबई ट्रेन विस्फोटों के सभी 12 आरोपियों को बरी करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के गुण-दोष का आकलन करेगी. इन विस्फोटों में 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार 11 जुलाई, 2006 को पश्चिमी लाइन पर विभिन्न स्थानों पर मुंबई लोकल ट्रेनों में सात विस्फोट हुए थे, जिनमें 180 से ज़्यादा लोग मारे गए थे और कई अन्य घायल हुए थे.

रिपोर्ट के मुताबिक पत्रकारों से बात करते हुए, बावनकुले ने कहा, "महाराष्ट्र सरकार सभी आरोपियों को बरी करने के हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने का फैसला करने से पहले मामले के गुण-दोष का आकलन करेगी. इससे पहले, हम फैसले के गुण-दोष और बरी किए जाने के कारणों जैसे पहलुओं पर चर्चा करेंगे. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी इस पर गौर करेंगे. राज्य सरकार मूल्यांकन के बाद ही सुप्रीम कोर्ट जाएगी."


भारतीय जनता पार्टी की महाराष्ट्र इकाई के पूर्व अध्यक्ष बावनकुले ने कहा कि अगर राज्य के पास कोई अतिरिक्त जानकारी है, तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उसे विस्तार से प्रस्तुत करेंगे. रिपोर्ट के अनुसार 2015 में एक विशेष अदालत ने इस मामले में 12 लोगों को दोषी ठहराया था, जिनमें से पाँच को मौत की सज़ा और बाकी सात को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी. अपील की सुनवाई के दौरान एक दोषी की मृत्यु हो गई.


यहाँ हुए कई ट्रेन विस्फोटों में 180 से ज़्यादा लोगों की मौत के 19 साल बाद, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सोमवार को सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया. न्यायालय ने कहा कि अभियोजन पक्ष मामले को साबित करने में पूरी तरह विफल रहा और "यह विश्वास करना मुश्किल है कि उन्होंने अपराध किया है."
यह फैसला महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी की बात है, जिसने इस मामले की जाँच की थी. रिपोर्ट के मुताबिक न्यायमूर्ति अनिल किलोर और न्यायमूर्ति श्याम चांडक की विशेष पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपराध में इस्तेमाल किए गए बमों के प्रकार को भी रिकॉर्ड में दर्ज करने में विफल रहा है और जिन साक्ष्यों पर उसने भरोसा किया है, वे आरोपियों को दोषी ठहराने के लिए निर्णायक नहीं हैं.

गवाहों के बयान और आरोपियों से की गई कथित बरामदगी का कोई साक्ष्य मूल्य नहीं है, उच्च न्यायालय ने उन 12 लोगों की दोषसिद्धि को रद्द करते हुए कहा, जिनमें से पाँच को विशेष अदालत ने मृत्युदंड और सात को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. उच्च न्यायालय ने कहा, "अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ मामला साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है. यह विश्वास करना कठिन है कि आरोपियों ने अपराध किया है. इसलिए, उनकी दोषसिद्धि को रद्द किया जाता है." पीठ ने 2015 में एक विशेष अदालत द्वारा पाँच दोषियों को दी गई मृत्युदंड और शेष सात को आजीवन कारावास की सजा की पुष्टि करने से इनकार कर दिया और उन्हें बरी कर दिया.


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