रविवार को बीएमसी अधिकारियों ने दादर में स्थित द्वितीय श्रेणी की विरासत संरचना – कबूतरखाना – के चारे वाले क्षेत्र को पूरी तरह तिरपाल से ढक दिया. (Pic/Shadab Khan)
इस कदम का उद्देश्य कबूतरों को वहां एकत्र होने से रोकना और उनके मल (बीट) से होने वाले संभावित स्वास्थ्य खतरों को कम करना है.
अधिकारियों का कहना है कि कबूतरों की बीट हवा में मिलकर श्वसन संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकती है, जो विशेष रूप से बुजुर्गों और बच्चों के लिए गंभीर हो सकती हैं.
बीएमसी की यह कार्रवाई बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा हाल ही में की गई उस टिप्पणी के बाद आई है जिसमें अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक स्थलों पर कबूतरों को दाना डालना न केवल सार्वजनिक उपद्रव है, बल्कि यह आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी खतरा बन सकता है.
अदालत ने बीएमसी को निर्देश दिया था कि वह ऐसे स्थानों पर निगरानी बढ़ाए और इस प्रकार की गतिविधियों में संलिप्त लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से भी न हिचके.
इस कार्रवाई के बाद दादर कबूतरखाना पर सोमवार को देखा गया कि कबूतरों की संख्या में स्पष्ट रूप से गिरावट आई है. चारा स्थल ढकने के कारण अब पक्षियों को वहां रुकने के लिए कोई खास आकर्षण नहीं रह गया है.
हालांकि, यह निर्णय सभी को सहज नहीं लगा. मुंबई उपनगरीय जिले के संरक्षक मंत्री ने नगर आयुक्त भूषण गगरानी को एक पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि पक्षी प्रेमियों और धार्मिक भावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकाला जाए.
पत्र में न्यायालय के निर्देशों के सम्मान के साथ-साथ संतों और पशु प्रेमियों की भावनाओं का भी उल्लेख किया गया है.
बीएमसी अधिकारियों का कहना है कि वे अदालत के आदेशों का पालन करते हुए स्वास्थ्य और स्वच्छता को प्राथमिकता दे रहे हैं, लेकिन भविष्य में सभी संबंधित पक्षों से बातचीत कर समाधान निकालने के लिए भी तैयार हैं.
दादर कबूतरखाना पर की गई यह कार्रवाई संकेत देती है कि अब नगर निकाय शहर में जनस्वास्थ्य और सार्वजनिक स्थलों की स्वच्छता को लेकर और भी सख्त कदम उठा सकता है.
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