संगठन ने अपने बयान में कहा कि जन सुरक्षा अधिनियम नागरिकों के मौलिक अधिकारों, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता पर गंभीर प्रहार करता है.
उनका आरोप है कि यह कानून संविधान के मूल सिद्धांतों के विपरीत है और सरकार को आम नागरिकों की आवाज़ दबाने का अधिकार देता है.
“यह अधिनियम लोकतंत्र के लिए खतरा है. हम इसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे,” संगठन के प्रवक्ताओं ने कहा.
मार्च के दौरान एक अन्य प्रमुख मुद्दा रहा — वर्तमान में प्रदर्शित नाटक “संन्यस्त खड्ग”. संगठन का आरोप है कि यह नाटक सामाजिक और धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है, जिससे समाज में तनाव और अशांति फैलने का खतरा है.
भीम सैनिक संगठन ने मांग की कि सामाजिक सद्भाव बनाए रखने के लिए इस नाटक के प्रदर्शन पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए.
मार्च में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता, नागरिक और विभिन्न सामाजिक समूहों के सदस्य शामिल हुए. मार्च पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और आयोजकों ने यह सुनिश्चित किया कि कानून-व्यवस्था का पालन हो. जगह-जगह पुलिस बल तैनात रहा, लेकिन माहौल नियंत्रण में रहा.
संगठन ने कहा, “हम डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा दिए गए संविधान की रक्षा और सामाजिक समरसता के लिए यह मार्च आयोजित कर रहे हैं.
हमारा विरोध लोकतांत्रिक और अहिंसक है, लेकिन हमारी मांगें स्पष्ट हैं — जन सुरक्षा अधिनियम तुरंत निरस्त हो और ‘संन्यस्त खड्ग’ पर बैन लगे.”
भीम सैनिक संगठन ने सभी नागरिकों, सामाजिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे इस आंदोलन का समर्थन करें ताकि जनता की आवाज़ सरकार तक पहुंचे.
आयोजकों ने पत्रकारों के लिए विशेष व्यवस्था की थी और आगे की रणनीति जल्द घोषित करने का संकेत दिया.
दादर में निकला यह मार्च अब राज्यभर में आंदोलन की शुरुआत माना जा रहा है, जिसका असर आने वाले दिनों में और व्यापक हो सकता है.
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