गुड़ी पड़वा, जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है, मराठी लोगों के लिए नववर्ष की शुरुआत है. (Pics: Atul Kamble)
इस दिन को विजय का प्रतीक मानते हुए, लोग अपने घरों में गुड़ी तैयार करते हैं,
जिसे एक बांस के डंडे पर नई साड़ी, फूल, मिठाई और एक स्वर्णाकर्षित बर्तन को उलटा लटकाकर सजाया जाता है.
उत्सव की शुरुआत में ढोल-ताशा और नगाड़ों की गूंज से गिरगांव की गलियां मुखरित हो उठीं.
प्रतिभागियों ने विभिन्न पारंपरिक नृत्य प्रस्तुत किए, जिसमें लेझिम, डिंडी और लावणी प्रमुख थे.
ये डांस प्रदर्शन न केवल मनोरंजन का साधन थे बल्कि यह भी दिखाते थे कि किस तरह से समुदाय अपनी परंपराओं को जीवंत रखे हुए है.
बच्चे और बुजुर्ग, सभी उम्र के लोगों ने इस जश्न में भाग लिया.
महिलाएं रंग-बिरंगी साड़ियों में सजी थीं और पुरुष धोती-कुर्ता में अपनी सांस्कृतिक पहचान को बयां कर रहे थे.
सड़कों पर बनाई गई रंगोलियाँ, जिनमें स्थानीय कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया, उत्सव की भव्यता को और बढ़ा रही थीं.
इस शोभा यात्रा का मुख्य आकर्षण था मोटरसाइकिल रैली, जिसमें युवा प्रतिभागी अपनी सजी-धजी मोटरसाइकिलों के साथ शामिल हुए.
इस रैली में विशेष रूप से सजावटी झंडे और फूलों से सजे वाहन शामिल थे, जो उत्सव की रोमांचकता को दर्शाते थे.
गुड़ी पड़वा का यह उत्सव न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि यह महाराष्ट्र की सांस्कृतिक एकता और समृद्धि का भी प्रतीक है.
यह उत्सव युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का एक जरिया भी है, जिससे वे अपनी सांस्कृतिक परंपराओं को समझ सकें और उन्हें मनाएं.
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