होम > मुंबई > मुंबई न्यूज़ > आर्टिकल > वंचित बच्चों के लिए मुंबई एनजीओ ने निकाला अनोखा समाधान, बैनर से बनीं फर्श चटाइयां

वंचित बच्चों के लिए मुंबई एनजीओ ने निकाला अनोखा समाधान, बैनर से बनीं फर्श चटाइयां

Updated on: 03 September, 2025 08:41 AM IST | Mumbai
Eeshanpriya MS | mailbag@mid-day.com

मुंबई स्थित एनजीओ ग्रीनसोल ने गणेशोत्सव के दौरान इस्तेमाल किए गए फ्लेक्स बैनरों को रीसायकल कर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों के स्कूलों के लिए चटाइयाँ बनाने की पहल की है, जिससे बेंच की कमी से जूझ रहे बच्चों को बैठने में सुविधा मिलेगी.

 PIC/BY SPECIAL CORRESPONDENT

PIC/BY SPECIAL CORRESPONDENT

मुंबई महानगर क्षेत्र में दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव के दौरान मंडलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले फ्लेक्स बैनर, और साथ ही इस दौरान राजनीतिक दलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले बैनर, आखिरकार एक अनोखे तरीके से उपयोगी साबित हो सकते हैं - राज्य के ग्रामीण इलाकों और आदिवासी इलाकों के स्कूलों में, जहाँ स्कूली बच्चों के लिए बेंच उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें फर्श पर बैठने के लिए मजबूर करने वाले `आसन` या फर्श पर चटाई बनाने के लिए.

मुंबई स्थित एक एनजीओ ग्रीनसोल, जो पिछले दस वर्षों से शहरी अपशिष्ट उत्पादों के पुनर्चक्रण में काम कर रहा है, स्थानीय गणेश मंडलों के साथ मिलकर उन्हें त्योहार के बाद फेंकने के बजाय इस्तेमाल किए गए फ्लेक्स बैनर उपलब्ध करा रहा है.


यह एनजीओ ग्रामीण और आदिवासी स्कूलों की मदद करता है. पुनर्चक्रित सामग्री का उपयोग करके, वे स्कूली बच्चों के लिए स्कूल बैग, बैकपैक, चप्पल, जूते, चटाई आदि जैसे स्कूल किट बनाते हैं. जहाँ बैकपैक नागरिकों द्वारा दान किए गए रीसाइकिल किए गए कपड़ों से बनाए जाते हैं, वहीं जूते नागरिकों द्वारा दान किए गए अनुपयोगी पुराने जूतों को रीसाइकिल करके बनाए जाते हैं.


आसन कॉर्पोरेट्स द्वारा इस्तेमाल के बाद दान किए गए फ्लेक्स बैनरों से बनाए जाते हैं. हालाँकि, ये हमेशा कपड़ों या जूतों जितनी मात्रा में उपलब्ध नहीं होते.

एनजीओ के सह-संस्थापक रमेश धामी ने कहा, "हम फ्लेक्स बैनरों को रीसाइकिल करके फ़्लोर मैट बनाते हैं और उन्हें स्कूली बच्चों के किट में शामिल करते हैं."


उन्होंने आगे कहा, "लेकिन अब बहुत से इवेंट आयोजक डिजिटल मार्केटिंग की ओर रुख कर रहे हैं, और अब बहुत कम ही बैनर का इस्तेमाल करते हैं. मैं नियमित रूप से अनुसंधान और विकास में सक्रिय रूप से शामिल रहता हूँ ताकि नई सामग्री, जिन्हें रीसाइकिल किया जा सके, और नए उत्पाद विकसित किए जा सकें जो स्कूली बच्चों को पसंद आएँ."

फ्लेक्स बैनर पीवीसी (पॉलीविनाइल क्लोराइड) से बने होते हैं, एक ऐसी सामग्री जिस पर कपड़े या पॉलिएस्टर का लेप लगा होता है, जिससे यह टिकाऊ तो ​​होता है, लेकिन कचरे के रूप में उत्पाद के निपटान के लिए उपयुक्त नहीं होता.

एनजीओ से जुड़े एक स्वयंसेवक चेतन दिवेकर ने कहा, "इन्हें रीसायकल करना ज़रूरी है. कई फ्लेक्स बैनरों पर कंपनियों या फ़र्मों के लोगो लगे होते हैं. एक दानदाता ने मुझे बताया कि उसे अपनी फ़र्म का लोगो एक शौचालय परिसर में लगे बैनर पर मिला. जब मैंने पूछा कि वे इन बैनरों का क्या करते हैं, तो मुझे बताया गया कि वे इन्हें जला देते हैं."

दिवेकर ने कहा कि इस सामग्री को जलाना पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है और इसे रीसायकल करने के तरीकों पर बहुत कम विचार किया जाता है.

उन्होंने आगे कहा, "संगठन इसे फेंकना पसंद करते हैं. बच्चों के लिए आसनों के रूप में इन्हें रीसायकल करना एक शानदार विचार है, जिसके रीसायकल, पुन: उपयोग और कचरा निपटान के संबंध में पर्यावरण के प्रति जागरूक निर्णयों पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेंगे."

दिवेकर कल्याण डोंबिवली नगर निगम (केडीएमसी) के साथ मिलकर सभी बैनरों को ग्रीनसोल को दान कर रहे हैं ताकि उनका उपयोग स्कूली बच्चों के लिए फर्श मैट बनाने के लिए किया जा सके.

धामी ने कहा, "मुंबई से 60 किलोमीटर से भी कम दूरी पर कई आदिवासी इलाके हैं जहाँ स्कूलों की हालत बेहद खराब है. महाराष्ट्र में, हम पालघर, मुखड़ा, रायगढ़, ठाणे और कर्जत के स्कूलों के साथ समन्वय कर रहे हैं. हमारी किटों की भारी माँग है."

ग्रीनसोल भिवंडी और मुंबई के बाहरी इलाकों में स्थित कार्यशालाओं में दान की गई सामग्री का पुनर्चक्रण करता है.

एनजीओ के सह-संस्थापक श्रेयांस भंडारी ने कहा, "हम एक सामाजिक उद्यम हैं जो वंचित समुदायों के लिए बेकार पड़े जूतों और सामग्रियों को आरामदायक, टिकाऊ चप्पलों, बैगों और चटाइयों में बदल देता है. हमारी पहल ने गैर-जैवनिम्नीकरणीय सामग्रियों के पुन: उपयोग से 3100 टन से अधिक CO₂ उत्सर्जन को रोका है."

अन्य आर्टिकल

फोटो गेलरी

रिलेटेड वीडियो

This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK