प्रदर्शन में शामिल भीड़ के हाथों में तख्तियां थीं — “कुत्ता भी इस देश का नागरिक है”, “करुणा भी कानून है” और “मारना नहीं, बचाना सीखो”. नारे गूंज रहे थे — “जानवरों का हक छीनना बंद करो” और “जीने दो”. (Pics: Ashish Raje)
पशु अधिकार कार्यकर्ता माया मेहता ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट को यह समझना चाहिए कि आवारा कुत्तों की समस्या का समाधान उनका जीवन खत्म करना नहीं है.
यह आदेश अगर लागू होता है तो देशभर में नगर निकाय निर्दोष जानवरों को बिना सोचे-समझे हटाना शुरू कर देंगे.”
उन्होंने चेतावनी दी कि इस लड़ाई को सड़कों से सोशल मीडिया तक हर मंच पर लड़ा जाएगा.
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि नगर निकाय आवारा कुत्तों की समस्या की जड़ — कचरा प्रबंधन की विफलता — पर ध्यान देने के बजाय आसान रास्ता चुनते हैं. उनका कहना था कि वैक्सीनेशन, नसबंदी और पुनर्वास ही स्थायी और मानवीय समाधान हैं.
कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि नगर निकाय आवारा कुत्तों की समस्या की जड़ — कचरा प्रबंधन की विफलता — पर ध्यान देने के बजाय आसान रास्ता चुनते हैं. उनका कहना था कि वैक्सीनेशन, नसबंदी और पुनर्वास ही स्थायी और मानवीय समाधान हैं.
वेटरनरी डॉक्टर समीर पाटिल ने मंच से कहा, “आवारा कुत्तों की संख्या इंसानी लापरवाही का नतीजा है. सज़ा इंसानों को मिलनी चाहिए, जानवरों को नहीं.”
इस विरोध में कई गैर-सरकारी संगठनों और पशु प्रेमियों ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से 11 अगस्त के आदेश को वापस लेने और केंद्र सरकार से सख्त राष्ट्रीय पशु संरक्षण नीति लागू करने की मांग की गई.
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ आवारा कुत्तों के लिए नहीं, बल्कि हर उस जीव के लिए है जिसे इंसानों की नीतियों की वजह से जीवन का अधिकार खोने का खतरा है.
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