कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से हुई और फिर दिवंगत निदेशक शरद एल. पटेल और प्रसिद्ध वैज्ञानिक पद्मश्री डॉ. कृष्णलाल चढ़ा की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया. इसके पश्चात किरण एल. पटेल ने मेहमानों और उपस्थित जनों का स्वागत भाषण दिया.
अस्पी समूह के संस्थापक लल्लुभाई पटेल की स्मृति में स्थापित इस अवॉर्ड की शुरुआत उनके दोनों पुत्रों ने वर्ष 1996 में की थी. पुरस्कार स्वरूप किसानों को ₹1 लाख की नकद राशि, ट्रॉफी, और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है.
इस वर्ष के विजेता किसान- हॉर्टिकल्चर श्रेणी में कर्नाटक के बेलगावी जिले के चिदानंद परसप्पा पवार को पपीते की खेती में आधुनिक तकनीकों के प्रयोग के लिए सम्मानित किया गया. 3.5 एकड़ में खेती करते हुए इन्होंने पपीते के सूखे पत्तों से भी आय अर्जित कर एक नई मिसाल कायम की है.
विंटर फार्मिंग श्रेणी में गुजरात के बनासकांठा जिले के वर्नावाड़ा गांव निवासी घेमरभाई केशरभाई पटेल को अरंडी की खेती के लिए पुरस्कृत किया गया. वे न केवल एक सफल किसान हैं, बल्कि सहकारी मंडलियों और पंचायत में भी सक्रिय भूमिका निभाते हैं.
महिला किसान श्रेणी में मिजोरम की लालरिनपुई और असम की नबनीता दास को संयुक्त रूप से सम्मानित किया गया. लालरिनपुई को ‘टमाटर लेडी’ के नाम से जाना जाता है और उन्होंने टिकाऊ खेती की मिसाल पेश की है. नबनीता दास ने नर्सिंग छोड़कर जैविक खेती को अपनाया और ग्रीनहाउस तकनीक के जरिए विविध सब्जियों का सफल उत्पादन किया.
कार्यक्रम के दौरान विजेता किसानों की उपलब्धियों को दर्शाते हुए ऑडियो-विजुअल प्रस्तुतियाँ भी दी गईं.
मुख्य अतिथि शशांक मणि त्रिपाठी ने अपने संबोधन में कहा, “ये किसान भारत के विकास की नींव हैं. किसानों का सम्मान करना, भारत माता का सम्मान करने के समान है.” उन्होंने किसानों को पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण संस्कृति के संरक्षक भी बताया.
इस अवसर पर डॉ. एस. बी. कदरकर, डॉ. रघुनाथ बी. डुंबरे, और दिवंगत डॉ. कृष्णलाल चढ़ा के योगदान को याद करते हुए उन्हें भी श्रद्धांजलि दी गई. पुरस्कार चयन प्रक्रिया में उनके योगदान को भी सराहा गया.
कार्यक्रम का संचालन डॉ. मेहुल ठक्कर ने किया और अंत में जतिनभाई पटेल ने आभार प्रकट करते हुए समारोह का समापन किया. इसके पश्चात सभी अतिथियों के लिए स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था की गई.
यह पुरस्कार समारोह न केवल किसानों की मेहनत का सम्मान है, बल्कि कृषि क्षेत्र में नवाचार और प्रेरणा का प्रतीक भी बन चुका है.
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