मुंबई के भायखला, मोहम्मद अली रोड, मझगांव, नागपाड़ा, धारावी और कुर्ला जैसे क्षेत्रों में जुलूसों का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों ने भाग लिया. (PIC/ASHISH RAJE)
जुलूस में शामिल लोगों ने इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करते हुए मातम किया, छाती पीटी और पारंपरिक तरीके से ताजिया उठाकर उन्हें दफन करने की रस्म अदा की.
युवाओं ने पारंपरिक परिधान पहनकर लाठी, तलवार और कांच की रॉड से हैरतअंगेज करतब दिखाए, जिससे जुलूस का दृश्य भावनात्मक और रोमांचक दोनों रहा.
मुहर्रम केवल शोक का महीना नहीं, बल्कि यह अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने और न्याय, बलिदान तथा इंसानियत की रक्षा के लिए प्रेरणा देने वाला अवसर भी है.
जुलूसों के दौरान धार्मिक गीतों और मर्सियों का पाठ किया गया, जिसमें इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला की त्रासदी को याद किया गया.
लोग ‘या हुसैन’ के नारे लगाते हुए आगे बढ़ते गए और ताजिया, जो इमाम हुसैन के रौज़े का प्रतीक होता है, को श्रद्धा से उठाया गया.
मुंबई पुलिस और प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किए थे. संवेदनशील इलाकों में अतिरिक्त बल तैनात किए गए और सीसीटीवी से निगरानी की गई.
ट्रैफिक को कुछ इलाकों में डायवर्ट किया गया ताकि जुलूस शांतिपूर्वक और व्यवस्थित तरीके से निकाला जा सके.
मुहर्रम का यह दिन मुंबई में धार्मिक आस्था, अनुशासन और श्रद्धा का प्रतीक बना रहा, जहाँ हर उम्र के लोग एक साथ मिलकर इमाम हुसैन की कुर्बानी को नमन करते दिखे.
यह दिन केवल एक धर्म का आयोजन नहीं, बल्कि मानवता के लिए एक बड़ा संदेश लेकर आता है – अन्याय के विरुद्ध सत्य और बलिदान की प्रेरणा.
ADVERTISEMENT