Updated on: 09 May, 2025 12:10 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 64.23% लोगों की नींद शहर के ध्वनि प्रदूषण – जैसे हॉर्न, निर्माण कार्य और आसपास के शोर – से प्रभावित होती है.
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देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में रहने वाले अधिकतर कामकाजी नागरिक नींद से वंचित हैं, लेकिन फिर भी वे नींद को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मानते हैं. यह खुलासा वॉकहार्ट हॉस्पिटल, मुंबई सेंट्रल द्वारा हाल ही में कराए गए एक ऑनलाइन सर्वेक्षण में हुआ है, जिसमें 30 से 55 वर्ष की आयु के कामकाजी मुंबईकरों ने भाग लिया. सर्वेक्षण को अस्पताल के सलाहकार न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. प्रशांत मखीजा की विशेषज्ञ राय से समर्थन मिला है.
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सर्वेक्षण में सामने आया कि 63.57% उत्तरदाताओं को सप्ताह के दिनों में 6 घंटे से भी कम नींद मिलती है. यह समस्या वैश्विक स्तर पर शहरी जीवनशैली की चुनौतियों को दर्शाती है. डॉ. मखीजा ने कहा, "लोग जानते हैं कि पर्याप्त नींद लेना जरूरी है, लेकिन उनकी व्यस्त दिनचर्या उन्हें ऐसा करने नहीं देती."
सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि 64.23% लोगों की नींद शहर के ध्वनि प्रदूषण – जैसे हॉर्न, निर्माण कार्य और आसपास के शोर – से प्रभावित होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह शरीर की सर्केडियन रिद्म को प्रभावित कर चिंता, हाई ब्लड प्रेशर और इम्युनिटी में कमी जैसे गंभीर प्रभाव डालता है.
एक और चौंकाने वाला तथ्य यह रहा कि 59.62% लोगों को लगता है कि वे सप्ताह के दिनों की नींद की कमी को वीकेंड पर पूरी कर सकते हैं, जबकि डॉ. मखीजा के अनुसार यह धारणा गलत है. "नींद की निरंतर कमी को वीकेंड पर अधिक सोकर पूरी नहीं किया जा सकता," उन्होंने कहा.
हालांकि, सर्वेक्षण में कुछ सकारात्मक संकेत भी मिले. लगभग 75.40% उत्तरदाता सोने से पहले शांतिपूर्ण गतिविधियों को प्राथमिकता देते हैं, जबकि 55.74% लोग देर रात सोशल या भोजन संबंधी गतिविधियों के लिए नींद की कुर्बानी नहीं देते.
इसके अलावा, 53.23% लोगों ने खर्राटों को सामान्य माना, जो नींद संबंधी विकारों जैसे ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया की अनदेखी को दर्शाता है. और केवल 52.66% लोगों को यह पता था कि नींद की कमी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करती है.
निष्कर्षतः, यह सर्वे बताता है कि मुंबईकर नींद के महत्व को समझते हैं, लेकिन शहरी जीवन की चुनौतियाँ उन्हें पर्याप्त नींद लेने से रोकती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय आ गया है कि नींद को स्वास्थ्य का मूल स्तंभ माना जाए, न कि केवल एक विकल्प.
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