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सीनियर सिटिज़न्स को भेजें स्कूल, डिमेंशिया से लड़ने में मिलेगी मदद

Updated on: 19 August, 2025 10:01 PM IST | Mumbai
Hindi Mid-day Online Correspondent | hmddigital@mid-day.com

यह बात एक्सपर्ट्स ने `डिकोडिंग डिमेंशिया` विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में कही.

तस्वीर सौजन्य/साहाभाव

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बुढ़ापे से जुड़ी समस्याओं और उनके निदान से जुड़े एक्सपर्ट्स ने कहा है कि वरिष्ठ नागरिकों को डिमेंशिया यानी की मनोभ्रंश से लड़ने में मदद के लिए उन्हें स्कूल भेजना चाहिए. एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार यह बात एक्सपर्ट्स ने डॉ. बी.एम. नानावटी कॉलेज ऑफ होम साइंस द्वारा एम.एम.पी. शाह महिला कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय और आजी केयर सेवक फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित `डिकोडिंग डिमेंशिया` विषय पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में कही. इसमें दुनिया भर के 300 से अधिक शिक्षाविदों, वरिष्ठ नागरिकों और संगठनों ने भाग लिया.

रिपोर्ट के मुताबिक डॉ. नीलेश शाह ने कहा कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए स्कूल शुरू करने चाहिए जहाँ उनके लिए विभिन्न गतिविधियाँ भी आयोजित की जाएँ. उन्होंने कहा कि इन स्कूलों में बुजुर्गों के लिए फिजियोथेरेपी सत्र, डिजिटल साक्षरता और कुछ शारीरिक एवं मस्तिष्क संबंधी व्यायाम आयोजित किए जाने चाहिए.


आजी केयर सेवक फाउंडेशन के सीईओ प्रकाश एन. बोरगांवकर ने कहा कि वर्तमान में भारत में 88 लाख वरिष्ठ नागरिक डिमेंशिया से पीड़ित हैं और 2036 तक यह संख्या 1.7 करोड़ तक पहुँच जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार आजी केयर के संस्थापक और निदेशक प्रसाद भिड़े ने डिमेंशिया के इलाज में देखभालकर्ता की भूमिका पर विचार किया और विश्वसनीय एजेंसियों से देखभालकर्ता नियुक्त करने की सलाह दी. सम्मलेन में शामिल मुंबई की पूर्व महापौर एडवोकेट निर्मला सामंत प्रभावलकर ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007, मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम 2017 और विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत बच्चों पर अपने माता-पिता की देखभाल करने के कानूनी दायित्व पर ज़ोर दिया.


अमेरिका के केंट विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर मैनेसी पाई भी सम्मेलन में शामिल हुईं और उन्होंने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि जीवन संज्ञानात्मक वृद्धावस्था को कैसे आकार देता है और बताया कि तनाव विभिन्न जैविक तंत्रों के माध्यम से मस्तिष्क को कैसे प्रभावित करता है. रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने संज्ञानात्मक संपत्तियों के रूप में रिश्तों पर भी प्रकाश डाला और कहा कि अस्पतालों से परे सामुदायिक कार्यक्रमों और देखभाल मॉडल की आवश्यकता है. भारतीय-अमेरिकी लेखिका और शोधकर्ता प्राजक्ता पडगांवकर संयुक्त राज्य अमेरिका से शामिल हुईं और उन्होंने डिमेंशिया से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए विभिन्न उपकरणों की जानकारी साझा की.


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